दशामाता का पर्व झाबुआ अंचल मे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है

सप्तमी के बाद मां दशामाता का पर्व झाबुआ अंचल मे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है,इसमे माता रानी की ,दशा माता के रूप में पूजी जाती है,विशेष रूप से ये पूजा, घर मे समद्धि ,परिवार की सुरक्षा के लिए होती है,इसमे भक्त अपनी आस्था अनुसार, चढावा चढ आते है!
(कहानी दशा माता की)
आशा की ज्योति,
एक समय की बात हैं, एक गाँव में
में भाई रहते थे । उनके माता पिता की मृत्यु हो गयी थी । चारो भाई खेती बाड़ी का काम करते थे और साथ में मिलकर रहते थे । कुछ समय बाद बचे भाई की शादी हो जाती हैं । उसकी पत्नी आने के बाद घर का सारा धन माल , सास के गहने और बाकी सब कुछ अपने पास रख लेती है। थोड़े समय पश्चात्, एक एक करके बाकी सभी भाइयो की भी शादी करा देते हैं। तीनो भाभियाँ आपस में जमीन के हिस्से कर लेती हैं , और उसमे से जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा सबसे छोटे भाई और उसकी पत्नी को देकर उन्हें अलग कर देती हैं।
सबसे छोटे भाई की पत्नी को दशामाता का इष्ट था और वह बहुत नियम धरम वाली थी। चैत्र महीना आने पर जब होली जलती है, तब सबसे छोटी बहु मामा भांजे से होली की जाल ( जलती हुयी होली की लौ ) में से कुकड़ी (कच्ची सूत का धागा) निकलवाती है । और फिर दस दिनों तक लोठा भरकर दशामाता की कहानी कहती हैं । दसवें दिन पीपल की पूजा करती। दसों दिन वह दशामाता की कहानिया सुनकर ही अपने खेत की रखवाली करने जाती है परन्तु तब तक तो पक्षी फसल के दाने खा जाते हैं । इधर बड़े भाई की पत्निया तो पहले ही अपने खेत की रखवाली करने चली जाती थी और खेत से सभी पक्षियों को उड़ा देती थी, छोटे भाई का खेत भी पास में था तो पक्षी उड़ कर वहां चले जाया करते थे । बड़े भाइयो के तो फसल अच्छी हो जाती हैं। पर छोटे भाई के खेत पर सिर्फ डंठल ही बचते है।
जब फसल काटने का समय आया तब सभी भाई-भाभी फसल काटने जाते है। छोटा भाई भी अपने भाई भाभी से कहता हैं कि में भी मेरे खेत पर फसल काटने जाता हूँ। तो इस पर बड़ी भाभी उसको ताना मरती है कि तुम्हारी पत्नी तो नियम धरम वाली है, कहानियाँ सुनती थी , दशामाता को पूजती थी, फिर खेत आती थी , जितने तो पक्षी तुम्हारे खेत के दाने खा जाते थे । अब तुम क्या फसल काटोगे?
भाभी का ताना सुनकर छोटे भाई को गुस्सा आता है। जब वह खेत देखने जाता हैं तो उसे सिर्फ डंठल ही दीखते हैं। अपने खेत की ऐसी हालत देखकर उसे और भी ज्यादा गुस्सा आता हैं। और वह अपने घर जाकर अपनी पत्नी को खूब पीटता है, ऐसा पीटता है की उसकी पत्नी की उठने की भी हालत नहीं रहती हैं । वह भूखी प्यासी ही सो जाती हैं ।
दशामाता को उसपर बहुत दया आती हैं, दशामाता विचार करती हैं मेरी पूजा करने के कारण इसने मार खायी । मुझे अपनी भक्त के दुःख दूर करने चाहिए । आधी रात में दशामाता जी एक स्त्री का रूप धरकर उसके पास आये और उससे बोले कि “सुहागन जग रही है या सो रही है, उठ मुँह हाथ धो, लड्डू लायी हु जो खा ले और झारी से पानी पी ले”। उसने लड्डू खाया, पानी पीया और वापिस सो गयी।
जब छोटी बहु के पति का गुस्सा थोड़ा कम हो जाता है, तो वो अपनी पत्नी को देखने आता हैं। वह मन ही मन सोचता हैं की इतना मारा मेने उसको, देखु तो सही कही वह मर तो नहीं गयी। खबर तो करू कैसी हैं वह। घर पहुँच कर वह अपनी पत्नी को बोलता है कि देख उठ जा। दशामाता के दिए हुए लड्डू और सोने के लोठे पर उसकी नजर पड़ती हैं , तो वह पूछता हैं कि ये सोने का लोठा और लड्डू कहा से आया? उसकी पत्नी बोलती हैं कि एक दैवी सदृश्य स्त्री आती हैं , उन्होंने बहुत सारा जेवर भी पहन रखे थे। वो ही मुझे उठती हैं और मुझे लड्डू खिलाती हैं, पानी पिलाती हैं, और चली जाती हैं।
सवेरा होने पर वह आदमी अपने खेत पर जाता हैं तो क्या देखता है कि खेतों में तो मोतियों की फसल उग रही है। जब जेठानियों को पता चला कि उसके तो मोतियों की फसल पकी है। तो उसकी जेठानिया उससे और ज्यादा जलने लगती हैं। और फिर देवरानी से पूछती हैं की ऐ बाई ऐसा क्या जादू करा तूने जो तेरी सारी फसल मोतियों की हो गयी, जबकि तेरे तो सिर्फ डंठल ही बचे थे । हमको भी बता दे, हम भी कर ले ।
देवरानी उनको सब बताती है। जेठानियों बिना होली के ही ऐसे ही लकड़ी जलाती हैं और कहानिया किस्से कहती हैं और हंसी मजाके करती हैं । और फिर अपने पतियों को बोलती हैं कि हमको भी पीटो। उनके पति बोलते है कि तुम क्यों बुढ़ापे में हड्डिया तुड़वाती हो। तुम्हारे पास तो सब कुछ है। भगवान तो अनजाने में ही टूटमान होते है। वो जिद्द पकड़ लेती है की नहीं हमारे भी मोती चाहिए, आप तो हमको भी पीटो । उनके आदमियों ने उनको भी खूब पीटा।
दशामाता ने सोचा अगर इनको चमत्कार नहीं बताया तो ये सच्ची नहीं मानेगी। तो फिर आधी रात को दशामाता पधारे और बोले ” सुहागन सो रही है या जाग रही है , ले लड्डू खा ले और पानी पी ले”। उसकी भाभियाँ उठ कर लड्डू खाती हैं, पानी पीती और सो जाती हैं । सभी भाभियाँ खुश हो जाती हैं कि अपने भी दशामाता पधारे। अब अपने भी सब मोती हो जायेंगे। जब सुबह वो और उनके आदमी खेत पर जाते हैं तो क्या देखते हैं कि सारे दाने क़ायमे (काले दाने) हो गए।
उसकी भाभिया बहुत दुखी होती हैं। वे कहती हैं की अब क्या करे , ये तो कायम हो गए। अब साल भर खाएंगे क्या। बच्चे भूखे मर जायेंगे। उनके पति बोलते हैं कि हमने तो पहले ही कहा था मत करो ऐसे, पर तुम लोग ही नहीं मानी। तुम लोगो के चक्कर में कायमे हो गए , अब क्या करेंगे। चलो छोटी बहु से ही पूछते हैं की अब क्या करे, उसके तो दशमता का इष्ट हैं , वही कुछ रास्ता बता सकती हैं ।
छोटी बहु तो बहुत सीधी थी , उसने दशामाता से प्रार्थना करी कि ये क्या हो गया, इनके कायमा कैसे हो गए। बच्चे भूखे मर जायेंगे। उस समय सतयुग चल रहा था तो दशामाता स्वयं बोले कि ” तेरे तो पहले से ही कम था और तेरे इतने से मोती हो गए वो इनको सहन नहीं हुआ।” वो दशामाता के पाँव पड़ती हैं और कहती हैं कि हैं कि हैं माताजी जैठजी और बच्चो की तरफ देखिये आप, जेठ जी और बच्चो की तो कोई गलती नहीं हैं , वो लोग भूखे मर जायेंगे। उनके लिए आप इनके वापिस दाने कर दो ना ।
तो इस पर दशामाता बोलते है कि ”सारी जमीन, रूपया पैसा, जेवर सब दबा कर बैठे है, अब तो जमीन, पैसे, जेवर सब कुछ बराबर चार हिस्सों में बांटे और चौथा हिस्सा तेरे को भी दे तो ये मिटेगा वरना ये नहीं मिटेगा । ” ले गरासनि तेरेको टूटे और हमसे रूठे” ऐसा बोल कर भाभियाँ दुखी मन से उसको चौथा हिस्सा दे देती हैं। सभी भाई भी बहुत खुश हो गए कि कुछ भी नहीं दे रखा था पर दशामाता की कृपा से सब बराबर बँट गया।
उसके पश्चात् भी कही कही कायमे रह गए थे । तब छोटी बहु दशामता के पैर पड़ती हैं और कहती हैं कि हैं माताजी सारे कायमे क्यों नहीं हटे, तो दशामाता बोलते हैं कि “जमीन में गड़े हुए धन में से भी चौथा हिस्सा तेरेको देंगे तो यह सब मिट जायेगा।” दशामाता की कृपा से छोटी बहु का सारा दुःख – दारिद्रय दूर हो गया।
हम भी दशामाता से यहि प्रार्थना करते है कि ” जैसे दशामाता ने छोटी बहु के दुःख दूर करे वैसे हम सबके भी दुःख दूर करे, जैसे उसपे टूटमान हुए वैसे हम सबपे होये,और जैसी कृपा उसपे रखी वैसी हम सब पर भी रखे “
जय माता दी”””
लेखिका”””रीमा महेन्द्र ठाकुर
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश
(पुरानी लोक कथाओं पर अधारित)

राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश