@जैन दर्शन में साधु जीवन जैसी पवित्र साधना हे उपधान तप”@@@@@@@आचार्य दिव्यानंदसूरिश्वरजी मसा ने झाबुआ नगर में प्रथम बार हो रहे “उपधान तप “ के प्रारंभ दिवस पर उपधान तप के तपस्वियों को दिया आज उद्बोधन ॥ @@@@@झाबुआ नगर में प्रथम बार आज जैन दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण कठिन तप “उपधान तप “ का प्रारंभ चातुर्मास कर रहे आचार्य दिव्यानंद सूरिश्वरजी मसा एव साधु – साध्वी मण्डल की पावन निश्रा में हुआ । प्रथम दिवस २०सितंबर को झाबुआ सहित देश के विभिन्न हिस्सो से १०० (सो ) से अधिक श्रावक श्राविकाए को राधाकृष्ण मार्ग स्थित “ गिरनार तीर्थ नगरी में आचार्यश्री द्वारा धार्मिक क्रियाए संपन्न करवाई ।शनिवार द्वितीय प्रवेश दिवस २१ सितंबर को बाहर से आकर और तपस्वी उपधान तप हेतु प्रवेश लेंगे ।शुभारंभ पर इस अवसर पर आचार्यश्री ने उपधान तप के तपस्वीयो को प्रेरक उद्बोधन देते हुए कहाँ कि “उपधान तप “जैन दर्शन का सबसे कठिनतप हे । इस तप के माध्यम से तपस्वी जैन साधु जैसी पवित्र साधना कर आत्मा को पवित्र बना कर कर्म की निर्जरा का श्रेष्ठतम कार्य कर मानव जीवन को सफल बनाते हे । आपने कहाँ की यह उपधान तप विधि पूर्वक और पूर्ण मनोयोग से संसार के मोह का त्याग कर करना आवश्यक हे । इसके पश्चात आचार्यश्री दिव्यानंद सूरिश्वरजी मसा ने गिरनार नगरी में प्रभु की स्थापित चो -मुखी प्रतिमा के समक्ष समस्त उपधान तप के तपस्वीयो को तीन तीन प्रदीक्षिणा मंत्रोंउच्चार के साथ दिलवाई । पहले श्रावक वर्ग और उसके पश्चात श्राविकाओ ने हाथ में श्रीफल लेकर नमोकार मंत्र के उच्चारण कर प्रदक्षिणा देकर प्रभु को श्री फल अर्पित किए । इसके पश्चात उपधान तप के प्रारंभ में पोषधव्रत की क्रिया और उपवास का व्रत क्रिया संपन्न करवाई । इस अवसर पर प्रवर्तकश्री मुनि वैराग्यविजयजी साधु मण्डल एव ८१ वर्षीय वरिष्ठ साध्वी कुशलप्रभाश्रीजी सहित साध्वी मण्डल उपस्थित थे ॥श्रीसंघ और चातुर्मास समिति सदस्य उपस्थित होकर संपूर्ण व्यवस्था सम्भाल रहे थे । चातुर्मास समिति अध्यक्ष संजय मेहता ने उपधान तप की संपूर्ण विधि की जानकारी देते हुए बताया की श्रावक श्राविकाए 47 दिवस तक साधु जीवन का आस्वाद लेते हे । कुछ श्रावक श्रावकए जिन्होंने यह तप 47 दिन का एक बार कर लिया है वे 35 दिवस और 28 दिवस का भी करते है । संपूर्ण प्रक्रिया की जानकारी देते हुए मेहता ने बताया कि सभी तपस्वी पोषधशाला में रहकर ही समस्त क्रिया करेंगे । सुबह पाँच बजे से धार्मिक क्रिया प्रतिक्रमण से प्रारंभ होगी । प्रभु दर्शन करने के पश्चात प्रतिदिन आवश्यक क्रियाएँ , प्रवचन , स्वाध्याय , आदि कार्य तप जिसमे एक दिन उपवास और एक दिन निवि तप के साथ करना होंगे । सबसे महत्वपूर्ण क्रिया १०० (सो) बार लोगस्स सूत्र का खड़े खड़े काऊसग्ग और १०० बार गुरुदेव कोविधि सहित ख़मासना (वंदना) का कठिन कार्य भी करना होगा ।चातुर्मास समिति ने संपूर्ण तैयारी सफलता के साथ कर ली हे ।संचालन संजय मेहता और आभार जयेश संघवी ने किया । समाप्त ।
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