झाबुआ

बस थका थका सा हूँटूटा हुआ हूँ, न अहम् हैन कुछ बड़े होने की इच्छा

न जाने कुछ समय से, मन अच्छा सा नहीं रहता है, अथाह प्रेम, चाह, अपनों की, देख, उनकी मिलने की
बात करने की इच्छा देख
क्यों कि बहुत बहुत चाह कर भी मैं , नहीं दे पाता हूँ
समय, कितने ही किरदार निभाने पड़ते है इस उम्र में भी, वह भी सभी के प्रति सम्मान से, निष्ठा से, थक जाता हूँ रोज रोज, कल जब आकाशवाणी के, मुझ से समय माँग रहे थे, मुझे से
क्या पूछा जाय, आप से, कब समय मिलेगा, बहुत ही सोच कर हाँ की, याद आने लगा, वो समय जब, तीस साल तक आकाशवाणी के कार्यक्रमो मै जाता रहा और
उस धन से, घर चलाने मै मदद मिलती थी, वो पल पल मुझे याद आता है, याद है, बहुत ही गर्मी थी, अपना
कार्यक्रम दे, इंदौर सरवटे पर खड़ा था, मेरे सामने, एक दुकान पर, ठण्डा जूस था, मन हुआ पिया जाय
कुछ राहत मिल सकती हैं
तभी घर का ख्याल आया
नहीं बच्चों के लिए, इससे तो कुछ फल लेते है, वो में जाऊंगा तब, पापा क्या लाये की आस लिए होंगे
खैर साहब नहीं पिया, तब अक्सर आकाश वाणी की चाह रहती थी, धन भी अच्छा लगता था, भारत सरकार की है न, अच्छा धन मिलता था घर मे काम आता था, आज जब अथाह, धन, नाम, यश सब कुछ है जब कोई भी चाह नहीं रही क्यो नहींजानता या कहूँ जानता हूँ, जी भर कर तोड़ा है उसऊपर वाले ने, कहीं का नहीं रखा, देता गया, छींनता गया का खेल खेलता रहा मेरे साथ, खैर यह बात आप सभी को अच्छी नहीं लगेगी कि ऊपर वाले को सुना रहा हूँ, कारण भी जानता हूँ उसने और के साथ, ऐसा नहीं किया, इस लिए, सबको प्यारा लगता हैं, मुझे कैसे लगेगा,
चलों वैसे ही मन की बात लिख दी केवल यह कहने के लिए कि, मुझे, गलत न ले, न मुझ में अहम् है, न बड़े जैसी कोई सड़ी सोच, सच तो यह है कि अच्छे से जानता हूँ, उस ऊपर वाले को, कब किसका भूत बड़े होने का उतार देता है
बस इतना कहना चाहता हूँ कि, खुद की जिंदगी से थका हुआ हूँ, बहुत बहुत ही छोटा इंसान, ही ऐसा होता है, मै उन सभी से, माफी चाहता है कि चाह कर भी, उन्हें न समय दे पा रहा हूँ, न कहीं आना जाना होता है, कुछ ईश्वर ने बना दिया अजीब सा, बस अकेला अच्छा लगता, कुछ मेरी जिंदगी के किरदार निभाने के कारण विवशता है सभी देशवासियों का, बहुत बहुत ही आदर करते हुए जीता हूँ, और हर रोज रोज ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि, मेरे काम हो गया है, तो अब लेले, थक सा गया हूँ, वो सदा ही बस मुस्कता हुआ, मुझे देखा करता है, आज कल उसने बोलना बन्द कर दिया, केवल, मुस्कता है,

डॉ रामशंकर चन्चल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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