
स्मरण दिवस पर
तुम्हारें जाने के बाद, इतना कर गुजरा हूँ जो , अधिकांश लोग, पूरे जीवन में नहीं कर सके प्रणाम करता हूँ, स्व उषा जी मेरी जिंदगी, मेरा दिल, मेरा दिमाग, मेरा सुकूंन, मेरा सब कुछ, तुम्हें गये, मात्र, पांच साल हुए हैं और इन पांच साल में इस कधर दोड़ लगाई है, मेरी जिंगदी ने, आज जब बैठा तुम्हें याद कर रहा हूँ तो, सचमुच यह सोच कर हैरान हूँ, मैं कितना कुछ कर गुजरा हूँ तुम याद नहीं आओ, इसलिए, सदा ही, हर पल, हर दिन, घर में रहकर भी पूरे देश, विश्व पटल पर, हजारों, हजारों, रचनाओं के साथ, हजारों रचनाओं के चाहने वालों के साथ न जाने कितने ही मुझे प्यार करने वाले, स्नेह औरअपनापन लिए सदा ही साथ देने वाले, बन मुझे जिंदा रखें है, जानता हूँ यह अद्भुत रूप से जीवन यूँ ही अकेले नहीं कर पाया हूँ तुम हाँ तुम सदा ही साथ थी, हर पल साथ थी यह अहसास, मुझे सदा बना रहा, क्योकिं इतना कैसे सम्भव है, सेकडों युवा पीढ़ी को, कविता सिखा गया, साहित्य से अद्भुत रूप से आज जोड़ दिया और, परिवार में, भी घर बैठे, कमरे में, और उस विरान,जंगल में जहाँ हम साथ साथ धुमते थे, बस इतना यही जिंदगी रही हैं इसी बीच, किसी रूह से मिलना भी तुम्हारी ही देन थी, तुम थी वहाँ सदा ही यह मैने उसमे सदा ही पाया प्रणाम करता हूँ तुम्हें, एक मकान और खरीद लिया, तीन पोते बड़े हो गये बात घर की, या देश की या जिले की हो सब को बहुत कुछ दिया है सदा ही, बिना किसी चाह के, अपेक्षा के नहीं जानता हूँ, कैसे कर गया, नहीं चाहता हूँ, जानना भी क्योकि यह केवल मैं जानता हूँ, तुम हाँ तुम साथ हो यूँ ही कोई इतना कैसे कर सकता हैं जो अक्सर लोग पूरे जीवन में नहीं कर पाते, मै केवल पांच साल में कर एक अजीब सुख और आनन्द का अहसास लिए सदा ही प्रसन्न होकर जी रहा हूँ यह सोचते हुए की तुम हो आज भी यही मेरे साथ, बस इसी तरह साथ बनी रहे, प्रणाम करते हुए , अथाह स्नेह और वन्दन
डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश