झाबुआ

रूप नहीं, रूह है यहएक काव्यमय, समीक्षा

देश के, इतिहास में
हिन्दी भाषा के, अथाह ब्रह्माण्ड में, साहित्य की
दुनिया में, ईश्वर की अद्भुत
उपस्थित का अहसास
कराती, जीवन्त, सजीव
बात करती हुई
कविताओं की, यादगार लम्हों की, परम सत्य
कविताओं की, हर पल के
पावन, पवित्र कुरान से
रामायण, गीता के
अद्भुत अविरल, देवत्व साहित्य सी, एक एक
शब्द, अहसास, मै
विराजमान, ईश्वर के
रूप की, अस्तित्व की
कमाल की ऊर्जा
और ताकत दे, जीवन्त
रखती, जिंदगी की
न जाने, कितनी ही
पवित्र, भूमि में, रची गई
सजी, संवरी, कविताओं
की, एक कालजयी
कृति का नाम है
ऐसा लगता हैं
कविता का, हर शब्द
ईश्वर के आशीष लिए
निकला हुआ है
जो लिखा गया नही
बल्कि, मन से
आत्मा से, निकला हुआ
ईश्वर की, अनुमति
लिए हो, जिसे
पड़ कर, शायद ही कोई हो
जिसकी आस्था, विश्वास
रूह के, अद्भुत अविरल प्रेम के, प्रति सम्मान के साथ
आदर लिए न हो
लगता हैं, कवि की रची गई
बनाई गई, कविता का
नहीं, बल्कि, ईश्वर के
उसके भीतर, विराजमान
रूप, का एक सजीव चित्र
जो अथाह प्रेम और श्रधा
अद्भुत रूप है
सचमुच, वन्दनीय है
इन कविताओं का
रूप, जो, हर पाठक को
नत मस्तक कर देता
प्रणाम करता हूँ
रूह को, रूह के
ईश्वर रूप को
जो केवल, एक दूसरे के
ख्याल रखना, एक दूसरे के
सुख और दुःख में साथ
देने के लिए
एक दूसरे के जीवन में
ऊर्जा दे, सत् कर्म करने के लिए सदा ही प्रेरणा देता हुआ, घर के,समाज के
देश के, सृष्टि के विकास की
अद्भुत गाथा लिए
सुख और सुकूंन के
साथ, आनन्द देता है
कवि, डॉ चंचल की
देवत्व लेखनी को
रूह के पावन, पवित्र
रिश्तों को, प्रणाम करता हूँ
प्रणाम करता हूँ
कृति के कवि
डॉ रामशंकर चन्चल
की, इश्वीय कलम के
आशीष को
प्रकाशक को
इंकलाब पब्लिकेशन को
जिसने, उसी पावन भूमि पर, कृति का प्रकाशन किया और आज, आनेवाले
कल को, प्रेम के
पावन रूप से
परिचय कराया

समीक्षा, एक रूह की
जिसने एक एक शब्द का
आत्म सात् किया

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