धर्म से ही सुख,पापों से ही दुख मिलता है,यह सनातन सत्य है। फिर भी व्यक्ति धर्म छोड़कर पापकर आत्म अहित करता है- मुनिश्री रजतचंद्र विजयजी म.सा

धर्म वैभव से परिपूर्ण मुंबई महानगर कामाठीपुरा श्री नमिनाथ जैनसंघ मे सुरिराजेंद्र ज्ञानपथ चातुर्मास के अंतर्गत चौमासी चउदस पर्व तिथि से प्रवचन श्रृंखला के शंखनाद किया गया। सर्व प्रथम मोहनखेड़ा तीर्थ विकास प्रेरक पू.आचार्यदेव श्री ऋषभचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजा के आज्ञानुवर्ती बंधु बेलडी़ शिष्य पंचम वर्षीतप तपस्वी प•पू• मुनिश्री पीयुषचन्द्र विजयजी म.सा.प्रवचनदक्ष प.पू.मुनिश्री रजतचंद्र विजयजी म.सा आदि ठाणा की तारक निश्रा में प्रवचन से पूर्व जिनमंदिर में मंत्रोच्चार द्वारा विधिवत जडावीदेवी गौतमजी सेठ परिवार ने चातुर्मासिक कलश स्थापना की। खचाखच भरी प्रवचन सभा ने सामुहिक गुरु वंदन किया। गुरुभगवंत ने मंगलाचरण कर जिनवाणी श्रवण का अमृत पान करवाया।
*🌷प•पू• मुनिश्री रजतचंद्र विजयजी म.सा.ने चातुर्मास की भूमिका बनाकर चातुर्मास में प्रत्येक श्रावक-श्राविकाओं को करने योग्य धर्म आराधना की विस्तृत में जानकारी दी।*
*🌸मुनिश्री ने आगे कहा धर्म से ही सुख मिलता है,पाप से ही दुख मिलता है,यह सनातन सत्य है। फिर भी व्यक्ति धर्म छोड़कर पाप से जुड़कर आत्मअहित करता है!*
*🌷प्रत्येक व्यक्ति को धर्म में प्रवेश करने के पहले श्रृद्धा -भक्ति-समर्पण चाहिए। धर्म दो प्रकार से होता है। एक बाह्य और एक आंतरिक रूप से।*
*🌷चंदुलाल (अपनी आत्मा) द्वारा एक मार्मिक उदाहरण देकर जिज्ञासुओं को समझाया की दस हजार की कीमत देकर गाय को खरीद लेता है। घरपर धर्मपत्नी को कहता हैं,अरे भाग्यवान इतनी सुंदर गाय किसी के पास नहीं मिलेगी जो में खरीदकर लाया हूं, तब उसकी पत्नी चंदुलाल से कहती हैं, गाय बहुत सुंदर हे रंग रुप भी बढिय़ा है, लेकिन यह दूध कितना देती है? ये बात सुनकर चंदुलाल का दिमाग ठनका और पत्नी को कहा अरे भाग्यवान खरीदारी करते यह पूछना तो मैं भूल गया! और जब जानकारी मिली तो पता चला एक बूंद भी दूध गाय नहीं देती है।*
*🌷हमारा जीवन भी ऐसा बन गया है की मात्र उपरा -उपरी जो जगत में सुखाभास की पर्त लगी है,वह हमें दिखती है, वास्तव में सुख का आभास होना चाहिए वह नहीं हो पाता,कारण इतना ही है की धर्म तो सभी को करना है, लेकिन धर्म आराधना करने के लिए हमारी श्रद्धा -भक्ति-समर्पण कितना।*
*🌷वर्ष भर में साधुओं को नवकल्पी विहार होता है। जिसमें चार महिने चातुर्मास का एक कल्प गिना जाता है। बाकी आठ महीने के आठ कल्प इस प्रकार की बात शास्त्र में आती है।*
*🌷गुरु भगवंत धर्म के मर्म को समझाते हुए कहा की जब घर में आग लगी हो,जितना हमारा कीमती सामान है,हम बचाने की कोशिश करेंगे, आखिर फिर यह घर फायर ब्रिगेड के हवाले करना ही पड़ेगा।उसी प्रकार यह कुछ क्षण पलभर का जीवन मिला है,जितना हो सके धर्म के हवाले कर दो। बादमें इसे कर्मराजा को सौंपना ही पड़ेगा।*
*🌷धर्म की आराधना दो प्रकार से होती है, जिसमें त्याग और ग्रहण की विशेषता बताई गई है।*
*उदा. कौई व्यक्ति को शराब की लत लगी है, उसे छोड़ना वह हो गया उसका त्याग, दूसरा व्यक्ति मंदिर जाने का नियम लेता है,वह हो गया कुछ धर्म में प्रवेश करने के लिए कुछ ग्रहण किया।*
*🌷धर्म में कुछ लाभ तुरंत फलदाई होते हैं। जैसे पुजा से मन प्रसन्न, सामायिक से समता मिले, प्रतिक्रमण से प्रायश्चित यानी (पापों से हल्का होना)*
*🌷आज विशेष चातुर्मास प्रारंभ के दिन श्री नमिनाथ जैन संघ कामाठीपुरा में विशेष रूप से प्रवचन के दौरान अधिक से अधिक श्रोताओं की उपस्थिति रही।*
*🌷मुनिराज श्री पीयूषचन्द विजयजी म•सा• ने श्रीसंघ में सिद्धियों को देनेवाले सिद्धितप का शंखनाद किया। सभी आराधकों को इस तप में अधिक से अधिक जुड़ने की प्रेरणा दी गई।