आज भी कभी तुम आ जाती हो
आज भी कभी भी
किसी से भी बात करते हुए
एकदम सहज तुम्हारा नाम
निकल आता है
मै खुद फिर सोच हैरान रहता
तुम, तुम्हें गये तो
पांच साल हो गये और
में ऐसा बोल गयजिसे तुम भीतर हो
सोचता हूँ
ये है चाहत मेरी
ये है प्यार मेरा
यह है जिन्दगी मेरी
यह है दिल और दिमाग की
तस्वीर मेरी
जो सचमुच होती हैं
हर वक़्त साथ साथ
जिसे सब, उषा की अद्भुत रूप
को प्रणाम करते हैं
मै भी तुम्हें उषा कि किरण के साथ
उषा याद करते प्रणाम करते
जीता हूँ
रोज रोज
नई सुबह को समेटे
दामन में मुस्काते
डॉ रामशंकर चंचल
