
प्यार हो, खुशी दोड़ी आयेगी
जीवन कहाँ व्यर्थ प्रलाप
का नाम नहीं
बल्कि सदा ही खुश रहने का, नाम है
चाहिए प्यार बेहिसाब आशाओं से भरा
निर्विकार, पावन भूमि पर
सजा हुआ, बस केवल प्यार
स्वार्थ, निश्चल , पावन
जो फिर किसी से भी मिले
जीवन सचमुच, खुशहाल
प्रसन्न होकर जीया जा सकता हैं,
इतना ही नहीं, सक्रिय रहते हुए, बहुत कुछ किया जा सकता हैं,
ऊर्जा बनी रहती हैं कि
हमे कोई प्यार करता है
अथाह प्रेम, बेहिसाब
हमें जीना है, उसके लिए
जो हमें बहुत प्यार करता है
जीना है तो फिर
कुछ कर गुजरते
जो, सभी को सुख और सुकूंन दे, सारे विचार
सोच, स्वत जन्म लेगी
यदि हम सचमुच ही
केवल प्यार चाहते है
डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश