झाबुआ

मारी चिंता चूर,,,,,,,

जयंतसेन सूरी मारी चिंता चूर
राष्ट्रसंत गुरु मारी चिंता चूर।

पेपराल नगर में जन्म लिया हे
श्री संघ पर उपकार किया हे
धरु कुल का कोहिनूर
जयंतसेन सूरी मारी चिंता चूर।।

पार्वती स्वरूप का लाल हे तू
परिषद का सरताज हे तू
शाश्वत धर्म को दिया भरपूर
जयंतसेन सूरी मारी चिंता चूर।।

नवकार जाप यहा शुरू भी किया
बंशी ओर रोहित को दीक्षित किया
नित्यानंद देश में हुए मशहूर
जयंतसेन सूरी मारी चिंता चूर।।

गोतम स्वामी जी की आरती बनी
नमो अरिहताणम की धुन भी बनी
प्रगटे हृदयना गायेंगे जरूर
जयंतसेन सूरी मारी चिंता चूर।।

लेखनी भी आपने यहा से चलाई
सर्वजन हिताय की धुन लगाई
आपकी आंखों का तारा राणापुर
जयंतसेन सूरी मारी चिंता चूर।।

हिंदी अंग्रेजी की करी पढ़ाई
चौमासे में आपने झांकी जमाई
राणापुर श्रीसंघ चरणो मे चूर
जयंतसेन सूरी मारी चिंता चूर।।

अवि के सिर पर हाथ धरा हे
ज्योति को तो आपका ही आसरा हे
सुरेश का तो आप हो हाजरा हजूर
जयंतसेन सूरी मारी चिंता चूर।। सुरेश समीर "राणापुर"

सन 1967 में जयंत विजय मधुकर ने स्वतंत्र चातुर्मास किया।तब राणापुर में ही उन्होंने अंग्रेजी,हिंदी, का अध्ययन किया।लेखन का शुभारंभ करते हुए नवकार धुन आदि तीन गीतों की रचना की। नव दिवसीय नवकार आराधना भी यही से प्रारंभ की।प्रथम शिष्य भी यही से दिया गया जो नित्यानंद विजय के रूप में 55 वर्षो से छाया की तरह साथ में रहे और वर्तमान में त्रिस्तुतीक समाज के आचार्य के रूप में विद्यमान हे। सुरेश समीर ने उन कार्यों को एक सुंदर गीत के रूप में रेखांकित किया हे। जब भाई सुरेश मधुर कंठ से गाते हे तो गीत ऊंचाई पर पहुंच जाता हे
निलेश पंचोली
वरिष्ठ साहित्यकार

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button