झाबुआ

हवाँ बदल गयी

“हवाँ बदल गयी “
  वक्त बदल गया
          अब फिज़ा बदल गई
   मौसम ए मिजाज़ की
             अब हवाँ बदल गई
  सजती थी कभी जहाँ
        सितारों की महफिलें
   धुंध के साये में आसमां की
             अब जफ़ाँ बदल गई
   मौसम ए मिजाज़ की……
   लगती थी कभी हिमगिरी
             श्रेतिमा की चादर सी
   हिम शिखाएं पिघल कर
           अब धरा में बदल गई
मौसम ए मिजाज़ की…..
   रवि की रश्मियों के मिलन से
        सागर में मेघो का सृजन
  उठती मानसुनी हवाओं की
          अब दिशा बदल गई
    मौसमए मिजाज़ की…..
   अविरल बहती थी कभी
         सरिता अपने प्रवाह से
   चट्टानों के बिच उनकी
           अब धारा बदल गई
   मौसम ए मिजाज़ की……
   बसंत की मदमाती सुगंध
       गुम हो गई उपवनों से
  आमों की अमराई की
          अब दशा बदल गई
  मौसम ए मिजाज़ की
                 हवाँ बदल गई!!
    यशवंत भंडारी “यश “

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