चैत्र कृष्णा अष्टमी, प्रथम तीर्थंकर श्री श्री ऋषभदेव भगवान का जन्म एवं दीक्षा कल्याणक तिथि है |
आज ही के दिन से बर्षीतप प्रारम्भ होता है |

जन्म :
जैन शास्त्रों के अनुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज और महारानी मरुदेवी के पुत्र भगवान ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन धनु राशि, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में अयोध्या नगर में हुआ था। वह वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर थें।
दीक्षा :
किसी समय राज सभा में नर्तकी नीलांजना के नृत्य को देखते हुए बीच में उसकी आयु के समाप्त होने से भगवान ऋषभदेव के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। भगवान ऋषभदेव ने पुत्र भरत का राज्याभिषेक किया और पुत्र बाहुबली को युवराज पद पर स्थापित किया। भगवान ऋषभदेव ने महाराज नाभिराज आदि से आदेश लेकर चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन इन्द्र द्वारा लाई गई ‘सुदर्शना’ नामक पालकी पर आरूढ़ होकर अयोध्या नगर के सिद्धार्थ वन में पहुंचे, वहाँ उत्तराषाढ़ा नक्षत्र आने पर वटवृक्ष के नीचे दीक्षा ग्रहण किए |
भगवान ऋषभदेव के शासन देव का नाम गोमुख यक्ष तथा शासन देवी का नाम चक्रेश्वरी देवी है |