
(प्रवचन सार ——-14/9/24 ) आचार्य श्री दिव्यानंदसूरिश्वरजी मसा @जो दिखाई दे रहा हे अनित्य हे और जो दिखाई नहीं दे रहा हे वह नित्य हे @जहाँ सयोग हे वहाँ वियोग हे ही । सयोग से राग द्वेष पेदा हो जाते हे और दुखों की परंपरा प्रारंभ हो जाती है । @मन से सयोग होता है और फिर उस पर ममत्व भाव रखने से दुख ही प्राप्त होता हे । @मानव भव एक मात्र भव हे जिससे सत्य को समझा जा सकता हे । @आत्मा के लिए ही शरणबद्ध होना लाभदायक हे ,जगत के लिए शरणबद्ध लाभदायक नहीं है । @चार शरणा जन्म से नहीं कर्म से प्राप्त हुआ हे । @चिंतन यह होना चाहिए की परमात्मा के वचनो में श्रद्धा कितनी और कैसी है । @सम्यक् दर्शन याने परमात्मा के वचनो में अटूट श्रद्धा ।श्रद्धा आ गई तो समझो मानव भव का 90 प्रतिशत कार्य संपन्न हो गया हे। @तत्व दृष्टि आ गई तो समझो मानव भव सफल हे ।जड़ और चेतन , जीव- अजीव को समझना ही तत्त्व ज्ञान हे। @एकत्व भाव सर्वश्रेष्ठ हे की में शुद्ध आत्मा हूँ ।(समाप्त )