झाबुआ
बस पराग सा हो जीवन

बस पराग सा हो जीवन “
न हो दाग सा
न हो आग सा
बस पराग सा,हो जीवन
वेदनायें अनेक सहकर
जो जिये हर पल हँसकर
उस वीतराग सा हो मन
बस पराग सा हो जीवन!!
जिस पर है फूलों का बसर
वहीं पर है शुलों का घर
उस शाख सा हो मन
बस पराग सा हो जीवन!!
अथाह जल के है समंदर
द्वीप बसे है जिसमें मनहर
उस धरा सा हो मन
बस पराग सा हो जीवन !!
जो गाते थे करुण क्रदंन
वो छेड़े सुर मन भावन
उस राग सा हो मन
बस पराग सा हो जीवन !!
दिग्भ्रमित पथ पर चलकर
जिसका सुन्दर हो सफर
उस राह सा हो मन
बस पराग सा हो जीवन !!
जहाँ विरह की थी बात
वो बन जाये मिलन की रात
उस भाग सा हो मन
बस पराग सा हो जीवन!!
यशवंत भंडारी “यश “