
रूस उक्रेन युद्ध पर
एक सम सामयिक सृजन
“कैसे बदलेंगे हालात “
किसकी जीत,किसकी मात
बढ़ती जाए जब यें बात
कैसे बदलेंगे हालात?
बात की बात पर जंग छिड़ी
अपनी जिद पर दोनों अड़ी
सुन नहीं रहे किसी की बात
कैसे बदलेंगे हालात?
अपने पराए के भेद बड़े
भाई के सामने भाई खड़े
रिश्तों पर है घात पर घात
कैसे बदलेंगे हालात?सत्ता को पाने की लड़ाई होती है सदा दुखदाई भूल रहे अपनी औकात कैसे बदलेंगे हालात? कैसी हो रही क्रूरता दम तोड़ रही मानवता
कोहराम मचा है दिन रात
कैसे बदलेंगे हालात?
शांति दूत की है दरकार
रोके जो यें हाहाकार
फिर दे खुशियों की सौगात
कैसे बदलेंगे हालात?
यशवंत भंडारी” यश “