झाबुआ

झाबुआ की काली

डॉ रामशंकर चंचल

शांत जंगल, ऊची, ऊंची पहाड़ियों और उसी पर संकरी पगडंडी का रास्ता जो देवला की झोपड़ी को जाता है। देवला के साथ उसकी पत्नी और दो बच्चे काली और थावरिया भी रहते हैं। काली नाम के विपरीत बेहद खूबसूरत सुन्दर थी। बड़ी बड़ी कजरारी आखें, गुलाबी होठ उसके दूध से दांत और दोनों गालों पर हंसते समय दिखाई देने वाले गड्डे तो उसको सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। पता नहीं क्या सोच कर देवला ने उसका नाम काली रखा। वैसे सोचने समझने की शक्ति इसमें है ही कहां। पैदा होते हो जो मुंह से निकल गया वह नाम अमर हो गया। न इन्हे जन्म तारीख मालूम रहती न हो पैदा होने का समय। इससे इन्हें क्या लेना देना। कोन सा भाग्य दिखना है जो जन्म तारीख और पैदा होने का समय याद रखें। दिन रात श्रम कर आज मैं जीने वाले कल की चिंता से मुक्त इन भोले भाले आदिवासियों को नसीब से क्या लेना देना। वर्षों हो गए आज भी वैसे ही हे जैसे पहले थे। यहीं चार खम्बो पर टिकी झोपड़ी पानी के दो मटके अर्थात बर्तन और खाने में मक्का की रोटी और तन पर लंगोटी इसके अलावा इन्हें चहिए ही क्या
खैर मैं काली की बात कर रहा था। काली जवान थी और देवला शराब का दीवाना। आज ही वह काली का सौदा कर आया, दस हजार में एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से। काली उस व्यक्ति के साथ नहीं जाना चाहती थीं, पर मजबूरी थी। आखिर एक दिन काली उस बूढ़े व्यक्ति को छोड़कर वापस घर आ गई। उसके भाग कर आने पर देवला ने कोई आपत्ति नही ली, बल्कि काली का भाग कर आना उसे अच्छा लगा। एक माह रही होगी काली, देवला आज फिर उसका सौदा कर आया। एक दुबले पतले टी बी मरीज से। जब काली ने इस बार विरोध किया तो देवला ने काली की खूब पिटाई कर दी। काली का दूध में नहाया सुकोमल शरीर बेतो की मार से लाल हो गया जगह जगह बेतो के निशान बन गए थे, नशे में चूर देवला की इस हरकत से काली डर गई और चुपचाप चल दी। दो तीन माह रही होगी, उसका पति ईश्वर को प्यारा हो गया। काली वापस अपने घर
काली को आए चार दिन भी नहीं हुए थे, देवला फिर एक व्यक्ति से सौदा कर उसे घर ले आया। काली खेत से घास काट कर आंगन में आकर खड़ी थी। देवला ने उस काली को उस व्यक्ति के साथ जाने को कहा, पर आज काली ने काली का रुप धारण कर लिया था। देवला ने मजबूर करना चाहा । इधर नशे में चूर उस व्यक्ति ने काली का हाथ पकड़ा। बस फिर क्या था, काली ने हाथ पकड़े दांतेडे एक तीखा औजार से उस व्यक्ति के हाथ पर दे मारा और भाग गई। वह व्यक्ति चीखता रह गया। देवला और उसकी पत्नी झीतरी काली के पीछे दौड़े, लेकिन आज काली किसी के हाथ नही आई और फिर कभी लौट कर वापस घर नही आई। सुना है,भागते वक्त काली की मुलाकात हिजड़ों की टोली से होती है।वह उनके साथ उनकी बस्ती में जाकर उनकी जलालत भरी जिन्दगी को देखती है।काली निश्चय करती है वह हिजड़ों को सम्मान से जीना सिखाएगी।वह उन्हें शिक्षा का हक लेने के लिए आंदोलन करने के लिए एकजुट करती है।काली अब उन्हीं की होकर रह जाती है।

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

इसरो द्वारा निर्मित फिल्म , झाबुआ की काली

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