जीवंत रखो अपनी
रचनाओं को “

” जीवंत रखो अपनी
रचनाओं को “
हमारा नाम, हमारा मान
हमारे द्वारा किये नेक काम
हमें मिले जो सम्मान
हमें मिली जो प्रतिष्ठा
हमारी सारी अर्जित संपदा
हमारे अवसान के साथ ही
धीरेधीरे विलुप्तहोतीजाएगी
और हमारे विचार
हमारी कल्पना
हमारी लेखनी
हमारी प्रतिभा
हमारा ज्ञान
जो कागज के पन्नों पर
ऊकेर कर रख रखे है
हमारे बाद
किसी रद्दी की टोकरी में
समा जायेगे या
कोई कबाड़ी,
उनको रद्दी के भाव
तोलकर ले जाये
उससे पूर्व उठों
और सब भ्रांतियों को तज कर
अपनी सर्जित रचनाओं का
एक बार अवलोकन कर
प्रेषित कर दो प्रकाशनार्थ
अपनी मृतप्राय रचनाओं को
अमरत्व प्रदान करने के लिए
” तभी जीवंत रहेगी ”
आपकी रचना,आपकी धरोहर
यहीं परम्परा रही है
सारे संसार की
डा. यशवंत भंडारी यश

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