झाबुआ

माँ मैने तुम्हें भी देखा है

माँ
पिता के न रहने पर
तुम अकेली
पड़ गई थी
मैने देखा है
माँ
तुम्हारी खामोशी
पीड़ा, दर्द सब कुछ
बहुत बहुत ही करीब से
तुम्हें देखा
बहुत बहुत लिखा
और कर भी क्या सकता था
पिता का न रहना
मुझे भी न केवल पिता
एक अच्छे दोस्त का
खोना था
जो आज भी
सदा ही महसूस करता हूँ
यह कमी
माँ
तुम्हारा वह दर्द
अकेला पन
जो मुझे बहुत ही भीतर तक
आहत कर देता था
आज उसी दर्द लिए
मै जी रहा हूँ
माँ
सचमुच
बहुत बहुत ही
तकलीप होती हैं
वैसे माँ
तुमने मेरा यह दर्द देखा
पिता ने भी देखा
जब मेरी पहली बीवी
न रही थी
तुमने, मैने और पिता ने
उस दर्द को बहुत ही
करीब से देखा
भोगा
तब माँ तुम थी
पिता थे
पर इस समय
मै अकेला हूँ
माँ
सचमुच बहुत ही
अकेला
जी रहा हूँ
माँ
तुम जब तक
जिन्दा चाहती हो
कर रहा हूँ
कर्म जब तक जिन्दा हूँ
पर माँ
तुम सोचो
कितना मुश्किल होता है
अकेले लड़ना
इस समय जब कोई भी
साथ नही देता
खैर माँ
कब तक
सुनाऊँ
दर्द कथा
चलो माँ
फिर कभी
बात करते हैं
मेरे पोतों ने
शोर मचा रखा है
उन्हे धुमाना है
तुम न जो जिन्दा रखा है
कुछ तो करते जीना है
फिर ये ही तो है
माँ
देखो अभी तुम्हें याद कर
दुःखी था
ये आये दोनों
मुझ से लिपट गये
बहुत ही प्यार से
बस ये प्यार ही है
माँ
दुनिया में
मेरी जो
मै जिन्दा हूँ

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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