झाबुआ

वर्णमाला मै मनोभाव

चोहदवां वर्ण   ” ग “
   ”   गुलजार सी आए बहार “
   गलतफहमी में मत जियो
   गम का हर घूंट हँसकर पियो
   गुणों का नित भरो भंडार
   गुलजार सी आए बहार!!
   गुनाहों से बचकर रहना
   गुरेज बुरे कार्यों से करना
   गलती को करों स्वीकार
   गुलजार सी आए बहार!!
   गुणके सदा गुण धारी बनो
   गो लोक के अधिकारी बनो
   गंधर्व देव भी करे नमस्कार
   गुलजार सी आए बाहर!!
   गणाधीश की शरण को पाओं
   गण देवों का मान बढ़ाओ
   गुणाधार का करो गुणाकार
   गुलजार सी आए बहार!!
   गर्भ ग्रह में जो विराजित
   गणधर द्वारा वे सब पूजित
   गुंजित हो मन के उद्गगार
   गुलजार सी आए बहार!!
   गंगा गाय गोकुल का धाम
   गाए सदा उनके गुणगान
   गुनीजनों का करो सत्कार
   गुलजार सी आए बाहर!!       
   गुमान मत करो अपने पद का
   गुमनाम होना है नाम सबका
   गुस्से का करो तिरस्कार
   गुलजार सी आए बहार!!
   गुलशन में महके फुलवारी
   गगन में ग्रहों की शोभा न्यारी
   गजब है प्रकृति का श्रृंगार
   गुलशन सी आए बहार!!
    यशवंत भंडारी यश

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