झाबुआ

डॉ रामशंकर चंचल के जीवन की अद्भुत सत्य कथा

झाबुआ, आदिवासी पिछड़े इलाके में एक साधारण हिंदू  परिवार में जन्म लिया, एक दुबला पतला बदसूत शुक्ल
का बचपन जिसे उसकी माँ भी बहुत दुखी थी, चार बेटो मे पिता की तीसरा बेटा, बचपन में ही उसे एक दिन सिर पर सफ़ा पहने एक खूबसूरत व्यक्ति का सपने में अक्सर दिखना होता है वह अपने पिता को बताता है, पिता उसे अपनी पेटी में रखे हुए एक संत का चित्र दिखते हुए पूछते है ऐसे थे
वह चौक के तुरन्त बोलता है हाँ यही थे
पिता चुप हो जाते, कोई बात नही ये संत है कहते हुए चुप थे, बड़े हो जाने पर उन्हें पता चला कि ये स्वामी विवेकानंद जी थे, बाद में अपनी बदसूती को सिर बड़ा होने से वे आजीवन सिर को सीधा रख सोते हुए रहे ताकि लम्बा सिर कुछ कम हो सत्य यह कि वह बहुत सही अर्थात् कम हो गया, बचपन में उनकी बेहद खूब सूरत बहन का जन्म के कुछ माह बाद निधन हो गया जिसे वे आज तक नही भूल पाते है, बड़े होने पर शादी हुई नौकरी नही थी शादी नही करना चाहते थे पर बड़े भाई की शादी हो रही थी सोचा होगा बाद में फिर खर्च करने पड़ेगे पैसे ज्यादा नही थे घर चल जाता था यही सोच परिवार वालों ने कर दी चुप बैठ गये, पर अपनी बीवी जो बेहद खूब सूरत थी और सीधी भी, कुछ समय उसे एकदम उस से नही जुड़ सके नोकरी नही होने से उसे एक रुमाल भी उसके चाहने पर नही खरीद दे सके आज भी इस पीड़ा का उन्हें अहसास होता है, साल भर में उनका बेहद खूब सूरत बच्चा पैदा हुआ एक साल में ही पीलिया रोग से उनकी खूब सूरत बीवी और बच्चा ईश्वर को प्यारे हो गये बहुत ही टूट चुके थे, घर पिता के अथाह प्रेम से प्यार से कुछ नहीं कर सके मन हुआ घर छोड़ कर भागने का पर पिता का अथाह प्रेम सदा ही उन्हें रोक देता था
पिता उन्हें अच्छे से जान गये थे बहुत ही प्यार करते थे यही वजह थी कि उनकी पत्नी की मौत से पिता इतने टूटे की उन्हें लखवा हो गया यह बात डॉ चंचल और सहन नहीं कर पाये कि उनकी पत्नी की मौत से पिता का लखवा हो जाना अक्सर दुःखी रहते थे
पिता प्राचार्य थे घर बहुत बहुत सी पत्र और पत्रिका आती थी उन्होंने उनको
खूब पड़ा और एक अजीब सा मोह हो गया उन्हें लेखन का पड़ने का जिसमें मन लगा रहता था
खैर पहली पत्नी के निधन के बाद दूसरी शादी कर दी घर वालों ने जो नही चाहते थे, आखिर शादी हुई पत्नी
के साथ रहते हुए ज्यादा समय लेखन को ही देते हुए जीयें पत्नी उनकी  शारीरिक सम्बधो के खिलाप थी यही वजह रही कि वे बहुत ही जल्दी इस माया से मुक्त हो जीने लगे थे, छोटी सी शिक्षक की सरकारी स्कूल में नौकरी होने से अपने बच्चों का अच्छे से पालन पोषण करना सम्भव नही था पर सदा ही जीवन संधर्ष करते हुए जी रहे थे उम्र भर चलता रहा यह कभी भी खुद के लिए नही जीयें, पत्र पत्रिका, और आकाशवाणी से लेखन की आय भी हो जाती थी जो उस समय बेहद मदद मिल जाती थी, इसी बीच पिता का निधन, फिर खास मित्र दो जो हर तरह से उनकी मदद करते आये उनका निधन, फिर माँ का, फिर अपने पोते का यह दुःखद चलता रहा जिसने उन्हें जीवन से बहुत ही तोड़ दिया, यही वजह से अक्सर उन्हें जीवन रास नहीं आया, अकेले रहने की और जंगल में धुमने की आदत सी हो गई ईश्वर की कृपा भी हुई तो उम्र के पचास के बाद
उनकी आर्थिक विकास हुआ, पैसा बर्बाद कभी नहीं किया एक रुपये का महत्वपूर्ण उपयोग कर रहे कभी कोई शौक नही पाला सादगी से रहना, खाना सब कुछ बेहद सादगी के साथ
अब कोई कमी धन की नही थी पर लेखन में सदा ही व्यस्त रहने से व्यर्थ शोक का समय ही नही निकाल पाते खूब लिखा खूब छपा जी भर के जो लिखा सब छपा यही वजह रही लेखन से सदा जुड़े रहे, कृतियों का प्रकाशित हुई बिना धन दिये बल्कि उन से अच्छा धन मिला आर्थिक हालत और अच्छे हुए, घर, तीन मंजिल का, गाड़ी, सब कुछ ईश्वर ने उनकी अद्भुत त्याग का फल दिया, बच्चों की शादी की जहाँ बच्चों ने चाहा इतना नाम औरसम्मान था कि सब कुछ संभव हो गया, इतना सुख चैन और आनन्द जो पचास के बाद नसीब हुआ जिसे देख अक्सर लोग उनकी खुशहाली की चर्चा करते हुए जलन लिए रहते थे यह बात उन्हें दुःखी करती थी कि जब कुछ नहीं था तब किसी ने सहनुभति नही दी कोई मदद् नही की ईश्वर ने अब जाकर कुछ राहत दी तो वह भी सहन नहीं हुआ समाज से, अक्सर दुःखी हो सोचते है कि और को मेरा सुख चैन रास नहीं आया यही वजह रही कि बेवक्त मेरी जिंदगी में फिर बीवी दूसरी चली गई जब हम जीना चाहते थे जीवन भर दुःख सहन करते हुए त्याग किया जब समय आया सुकूंन का तो इतना बड़ा फैसला ईश्वर का उन्हेंबिल्कुल मंजूर नहींं हुआ, ईश्वर से आस्था पूरी तरह खत्म हो गई और परिवार के लिए सदा कि तरह फिर न चाहते हुए भी लग गये
पत्नी के जाने के बाद तीन पोते नसीब हुए एक बार फिर जीवन उसमे लगा दिया, बहुत ही टूट चुके थे इसी बीच एक कि रूह से अथाह प्रेम हो गया जिसने उन्हें टूटने से बहुत बचा कर जीवन को सही दिशा में ले जाने मै मदद की, आज वे अक्सर कहते है कि
यह मेरा तीसरा जन्म है एक जीवन में ही तीसरा जन्म महसूस कर जी रहा हूँ
जब ईश्वर ने मुझे रूह से प्रेम करा हर समय साथ का अहसास कराया, शायद कुछ और त्याग कर जी और को सुख और सुकूंन देने के लिए लेखन सर्जन करते हुए बहुत बहुत बहुत ही कुछ लिख कर सुना कर समाज को, देश को भेट करते हुए जी रहा ये इंसान
सचमुच वन्दनीय है जो आज एक रूह प्रेम मे ईश्वर रूप को निहारते हुआ लगा हुआ है अपने सदा से त्याग मे फर्ज में
बिना कोई चाह के सपने के बस जीना है सदा की तरह और के सुख और सुकूंन के लिए शायद यही मेरे जन्म मकसद है और जी रहा हूँ एकदम एकांत दुनियाँ में लेखन को साध्य मानते हुए ये है इस साधक का जीवन
जो आज हजारों को जीने का होसला देते हुए बहुत कुछ सिख देता है कि जिन्दगी जीने का नाम है कुछ कर गुजरते हुए देश और समाज के लिए भी, केवल खुद के लिए जीना भी क्या जीना है जीना उसको  कहते है जो सदा ही और के लिए जीता है एक अद्भुत संदेश देती जिन्दगी को प्रणाम
सत् सत् प्रणाम

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button