चालीससालों से प्रतिदिन लिखता, हजारो पाठकों और श्रोता तक रचनाओं को भेजता, झाबुआ का

अद्भुत, साहित्य साधक, डॉ रामशंकर चंचल
मध्य प्रदेश के, आदिवासी इलाके में झाबुआ की रानापुर तहसील में जन्में डॉ रामशंकर चंचल की, अद्भुत साहित्य साधना, पूरे देश के लिए, एक
चर्चा का विषय है , जो आज चालीस सालों से प्रतिदिन, सर्जन कर रहे और अपनी कविता, कथा आदि को, पत्र और प्रत्रिका के द्वारा और यू टू ब पर
आज सालों से उन रचनाओं को आम आदमी तक हजारों तक भेज एक अद्भुत इतिहास रचा है, इतने सालों से प्रतिदिन लगे रहना , सचमुच चौकाने वाला विषय है, यह इस बात को भी साबित करता है कि इन सालों में सेकडों दर्द, दुःख के बाद भी कभी भी विचलित न होकर सालों से लगे रहना, सचमुच, अद्भुत कार्य है, जो आज, बहुत बहुत ही कम कभी कुछ लोग मै देखने मिल सकता है इतने लम्बे समय में, कितने ही ऐसे हालत आये होंगे, जब कुछ भी कुछ समय तक सम्भव नही हो सकता हैं, उन हालातों में अक्सर लोग बिखर जाते है, टूट जाते है और अपना कर्म करने मै भी असमर्थ होते है, ऐसे हालातों में भी
डॉ रामशंकर चंचल का, अद्भुत आत्म विश्वास, निष्ठा, और समर्पित साहित्य, हिन्दी भाषा की सेवा , आज आनेवाला कल भी प्रेरणा लेगा, कोई दो मत नहीं
आज, कहाँ देखने मिलते है, अपने संपूर्ण जीवन को, सालों से, हिन्दी भाषा के लिए, साहित्य के लिए भेंट करने वाले अद्भुत, साहित्य धनी
सचमुच, बहुत ही गर्व का विषय है कि यह, सरस्वती पुत्र, डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ की, आदिवासी भूमि से है
जहाँ, किसी भी साहित्य की, कला की बात करना, बेमानी होगी, जहाँ, निरक्षर लोग की बस्ती के नाम से जाना जाता हैं, वहाँ साहित्य जैसे, गहन, गम्बीर, विषय पर एक व्यक्ति आज
संपूर्ण विश्व पटल पर पताका फहरा रहा है, यह कोई साधरण बात नही
साधरण कुछ है तो, डॉ रामशंकर चंचल, जो सचमुच बेहद, साधरण, सादगी लिए, सहज सरल, इंसान है, जिसे कोई मतलब नहीं, बस लेखन करना और अपनी बात आम आदमी तक भेजना और साहित्य से, जितना हो सके जोड़े रखना चाहते है सभी को
उनका मानना है कि, साहित्य जिन्दा हैं तो, मानवता, कभी नहीं मर सकती हैजिस दिन साहित्य, खत्म हो जायेगा, लुप्त हो जायेगा, उस दिन मानवता भी
खत्म हो जायेगी, मानवता को बचाना है तो, इसे जिन्दा रखना होगा
अद्भुत सार्थक, सोच और, चिंतन के साथ, लगे सालों से इस महान, सरस्वती पुत्र को, प्रणाम, जिसने आज
एक ऐसा, कर्म करते हुए सभी को, प्रेरित करने का नेक काम किया है जो
जितनी सराहना की जाय कम होगी
वन्दनीय है, देव भूमि झाबुआ, वन्दनीय है, डॉ चंचल की साधना, निष्ठा और सादगी