@प्रवचन सार – झाबुआ -आचार्य दिव्यानंदसूरिश्वरजी मसा-11/9/24
——————————————(१)मानव रूपी जीव में प्रभु द्वारा दी गई जीनवाणी में श्रद्धा नहीं होने से हमारे अंदर विराजित “आत्मा “के दर्शन नहीं कर पा रहा है ॥। (२)वर्तमान समय में मानव ,धर्म -साधना तो बहुत कर रहा हे किंतु श्रद्धा के साथ नहीं कर रहा हे जबकि “श्रद्धा “ही साधना हे (। (। (३)राजा प्रदेशी के समान इस जगत के अन्य जीवों को भी सम्यक्तव के अभाव में “आत्मा “दृष्टिगोचर नहीं हो रही है और आत्मा के अस्तित्व पर ही प्रश्नउठा कर मिथ्यात्वरूपी पाप बंध कर रहे है ।(। (। (४)सर्वज्ञ ज्ञानी होता हे वो ही वह जीव को प्रत्यक्ष देखता है और आत्म दर्शन कर लेता हे ।(। (। (५)आत्मा का स्वरूप अरूपी हे इसलिए देख नहीं सकते हे किंतु प्रत्येक जीव को आत्मा के अस्तित्व और परलोक के अस्तित्व को मानना चाहिए ।(। (। (६)जैसे तिलों में तेल , दूध में घी को देख नहीं सकते हे आत्मा को भी इन आखो से नहीं देख सकते हे केवल अनुभव से सिद्ध कर सकते हे । समाप्त ।