झाबुआ

निर्थक जीवन में अर्थ ढुंढ रहा हूँ

अभी कुछ दिन पहले, किसी समाचार पत्र में, किसी कवि की ये लाइन पड़ने मैं आई, कविता पड़ने की जरूरत नहीं हुई, मेरे लिए यह लाइन ही बहुत थी, दुःख इस बात का है कि, आज की अधिकांश सोच, इस तरह की क्यों है
जीवन, किसने कहाँ, निर्थक होता है, जीवन की परिभाषा, सदियों से, सेकडों, विद्धवान द्वारा की जाती रही हैं, खूब पड़ा है, मैने, सब को पड़ा है यह कहूँ तो भी चलेगा, पुरा जीवन, पड़ने और लिखने के सिवा कुछ आता ही नहीं है मुझे, खैर साहब, सचमुच
बहुत ही दुःख हुआ, इस सोच पर की, जीवन को क्यों कोसा जा रहा है, ईश्वर ने सभी को सब कुछ दिया है, चाहिए, खुद को अब की आप, कैसे जीये, कैसे खुश रहे, जीवन कभी भी किसी का निर्थक नहीं होता है, वह खुद उसे निर्थक बना दे
यह अलग विषय है, बेहतर है कि, जीवन को जीया जिया जाय, ये बात मैं कर रहा हूँ, मैं, यानी, जिसने जीवन में खोया ही खोया है
पर कभी भी किसी को अहसास नहीं होने दिया कि
जीवन व्यर्थ है, क्यों कि  में नहीं चाहता हूँ, आनेवाला कल, युवा, कुछ करने से पहले ही, जीवन की इस, परिभाषा को, पड़े और करने से पहले ही हताश हो
जाय, सच तो यह है कि, कई बार हम खुद, और के लिए जीते हैं, तब अपना या
अपनी बहुत कुछ खुशी को दफ़न कर देते हुए रहते है, जब हम खुद ही, अपना, सुख चैन और आनन्द, त्याग कर, और के लिए जीते हैं फिर, जीवन को क्यो दोष दे, जीवन कभी भी किसी का निर्थक नहीं होता, निर्थक खुद करता है या उसे बेवजह समझ लेता है, मैं सदा ही, जीवन के प्रति सम्मान, पूर्ण निष्ठा से लगा रहता हूँ, सब कुछ खोने के बावजूद, बस इतना जान ले, आप की, आपका जन्म क्यों हुआ, हो सकता हैं, ईश्वर ने आपको और के सुख और सुकूंन के लिए पैदा किया हो, तो फिर उसी मै खुशी तलाशे, और, जीवन को निर्थक नहीं समझते जीये, यहाँ एक बड़ी बात यह है कि, जीवन को सदा ही उन से तुलना कर जीये, जो हम से ज्यादा
जीवन, निर्थक किये जी रहे है, कहना चाहता हूँ, सदा ही, सकरात्मक सोच लिए
ऊर्जा लिए जीये और, को भी यही करने की प्रेरणा दे
खुश रहे मस्त रहे, हर हाल को जीवन का हिस्सा माने
हो सकता हैं, जो आज, निर्थक लग रहा है, है नहीं, पर लगता हैं, कभी कभी, वही, समय, कोई, अद्भुत रूप सेआप के, जीवन में अद्भुत, रंग भर सकता हैं, तब आपको, आप की कहीं बात ही, व्यर्थ लगे,बेहतर है
धर्य के साथ, आनेवाले कल को, सुखद मान, जीये, जो होगा, अच्छा होगा, सोच,जियों जीवन कभी निर्थक, प्रतीत नहीं होगा

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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