झाबुआ

खुशनुमा हवा थी, सोचा बात की जाय

बहुत ही गर्मी के बाद
आज मौसम, खूब सूरत
लग रहा था, बहुत ही सुखद, मिठी हवा दस्तक
दे रही थी, जानता था
पानी आयेगा, बहुत ही
पर, बहुत ही दिनों से
हवा से, मुलाकात नहीं हुई थी, बस, मन हुआ, आने दो पानी, आज, बात कर के रहेगे, बात हुई, अच्छा लग रहा था, कैसी हो
मैने पूछा, उसका, जवाब न दे, बोली, बहुत ही गर्मी में थे, सोचा, चलों, मिल आती हूँ, शायद, कुछ कम हो
मैने कहाँ, तुम्हे, बहुत रहती
मेरी चिंता, क्यों
कुछ न बोल, अपना रुख
शरमा के, दूसरी तरफ कर लिया, खैर,
सुख और सुकूंन
महसूस कर रहा था
सोचा, बहुत ख्याल रखती हैं, मेरा, बहुत है इतना
जीने के लिए
मैने उसे, दोनों हाथ जोड़
प्रणाम किया, उसने भी
उसी तरह, मुझे जवाब दिया, और उदास सी
चली गई, जानता हूँ
उसके लिए में अकेला नहीं
और की भी, जवाब दारी है
ये बात और है कि
मैं, उसके, सुख और सुकूंन
का, एक, अहमियत रखता
हिस्सा हूँ
जिसे मेरे लिए वो

डॉ रामशंकर चंचल

झाबुआ मध्य प्रदेश

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