
“ मन , वचन और काया(शरीर ) की एकाग्रता के साथ “उपधान तप “ जो श्रावक श्राविकाए करते हे उनकी आत्मा कई जन्मों के कर्मो को नष्ट कर तीसरे भव में मोक्ष की प्राप्ति निश्चित रूप से कर लेती हे “ उपरोक्त उद्बोधन पूज्य आचार्यश्री दिव्यानंद सूरिश्वरजी मसा ने झाबुआ के श्री ऋषभदेव बावन जिनालय के श्री राजेंद्रसूरी पोषदशाला में उपधान तप के तपस्वीयो को उपदेशमाला ग्रंथ की गाथाओ का विवेचन करते हुए शनिवार कोदिए । पूज्य आचार्यश्री ने आज “हरिकेशबल मुनि “ का दृष्टांत श्रवण करवाया । उन्होंने कहाँ कि जैन शासन में धर्म आराधना करने में कुल या जाति को नहीं बल्कि “सदाचरण और उत्कृष्ट तप “करने वालों को महत्व दिया जाता हे जैसा कि हरिकेशबल मुनि का जन्म निम्न कुल ,चांडाल के कुल में हुआ था लेकिन उन्होंने साधु जीवन अंगीकार कर तप , जप और संयम की इतनी उतर्कृष्ट आराधना कीं कि मनुष्य तो सेवा करते ही थे साथ में देवता भी उनकी सेवा भक्ति में लीन रहते थे । आपने कहाँ की उपधान तप में जिस प्रकार श्रावक श्रावक उत्कृष्ट साधना कर रहे हे यह अनुमोदनीय के साथ जो यह तप नहीं कर रहे हे उनके लिए अणुकरणीय भी हे क्योंकि यह मानव धर्म के साथ जैन धर्म बार बार नहीं मिलता हे ।आपने उपस्थित सभी तपस्वीयो से आग्रह किया कि उपधान तप करने के पश्चात भी तप कार्य में अग्रसर रहे और जो नियम उपधान तप में ग्रहण किए हे उन्हें निरंतर करते रहे छोड़े नहीं ।@@@@@@@@@@@@@@@ संजय मेहता ने बताया कि पर्युष्ण पर्व की समाप्ति के बाद भी उग्र तपस्या का दोर अभी जारी हे । श्रीमती ज्योति शांतिरत्न सकलेचा द्वारा मात्र गर्म जल के आधार पर उग्र तपस्या जारी हे और आज 29 वा उपवास पूर्ण हुआ ।तपस्वी कुल 36 उपवास 5 अक्तूबर को पूर्ण कर 6 अक्तूबर को पारना करेगी ।फोटो – उग्र तपस्वी श्रीमती ज्योति ॥