झाबुआ

“सुखदुख की मिलती सौगात “
आना भी है खाली हाथ
जाना भी है खाली हाथ
धूप छांव सी इस जिंदगी में
सुख-दुख की मिलती सौगात

वैभवशाली मिले कई पल
किया बहुत भोग विलास
सत्ता, साधन और समृद्धि भी
खूब रही थी जिनके पास
मान नहीं किया समय का
झेल रहै अब आघात
सुख दुख की मिलती सौगात

मखमली शय्या पर सोए
स्वर्ण पात्र में खाये पकवान
उच्च कुलीन कीमती वस्त्र
होते थे जिनके परिधान
वक्त ने ऐसी करवट बदली
बस बची अब टूटी खाट
सुखदुख की मिलती सौगात

हवा में जो बातें करते थे
जमीं पर ना टिकते थे पाव
जिनकी एक आवाज पर ही
तय होते थे बाजार के भाव
बैर के भाव बराबर भी
नहीं बची उनकी औकात
सुखदुख की मिलती सौगात

अहंकारी बनकर रहै जो
कभी न पाये जग में मान
जीव जगत में जितने है
सबको मानो एक समान
परहित समो धरम नहीं
स्वीकारों ये सच्ची बात
सुखदुख की मिलती सौगात
यशवंत भंडारी यश

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