झाबुआ

(शब्द क्षितिज)📝

📝कुछ शब्द बने कुछ मिथ्य हुऐ.
शब्दों का ताना बाना है!
मन के अंतर में जो उतरा .
बस एक .तेरा मुझमें आना!

📝जहां क्षितिज नहीं होने देता.
नभ और धरा का महामिलन !
वहाँ दृष्टिकोण बदल देता.
हर बार तेरा .मिलकर जाना!!

📝श्रापित सा लगता है.जीवन.
मन में है उद्देग्य भरा !
है.टूट रहा मन का संकल्प .
तन ढूँढ रहा है.ढह जाना!!

📝अब न मन में .कोमल से भाव.
अब न कुछ नयी कहानी!
तिल तिल जलता.वर्चस्व भाव.
जबसे तुझको उसका जाना!!

📝न तू मेरा बंधक.न तुझपर कुछ.
हक़ है मेरा!
संकल्प लिया .जब दूर हुऐ.
फिर कैसे तेरा हो जाना!!

📝अब तो आ बैठी .सर्द रात,
न ठिठुरन .छोडेगी साथ!
अब नहीं कामना है कोई.
जबसे न तेरा.आना जाना!!

📝स्वारचित-रीमा महेंद्र ठाकुर.
(वरिष्ठ लेखक .साहित्य संपादक.समीक्षक)
राणापुर झाबुआ मध्य प्रदेश भारत.📝

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