झाबुआ

बेवजह मुस्कान लिए जिंदगी

टूटा मन, थका शरीर
कड़कड़ाती ठंड
घर के किरदार निभाते
बेवजह मुस्कान लिए
रोज रोज़ जीती जिंदगी
छोड़ गए सब कुछ
छोड़ भगवान के पास
कुछ शहर छोड़
कुछ बेवजह भयभीत होकुछ काम निकल गया तो
सब आते ही है
छोड़ने के लिए
आप वहीं के वही
अकेले, जैसे पहले थे
आदि हो है है जिंदगी
यहीं सब कुछ होता आया
इसके साथ और होता रहेगा
कहीं कोई दूर दूर तक
किसी अपने का अहसास नहीं
जीना है क्योंकि
मर नहीं सकते हैं
जब मर नहीं सकते तो
कुछ तो करे जीये किसी और के
सुख सुकून के लिए
उनकी आवश्यकता है
जानते हैं अच्छे से
चलों यही सही
उसमें जन्म दिया
उस ईश्वर को क्यों
नाराज करे उसे खुश रखना है
तो हमें खुश रहना होगा
चाहे खुशी की कोई वजह
हो या नहीं हो
किसी जीते हुए
सुख सुकून महसूस करते हुए
इंसान को बताते है
पीड़ा तो अद्भुत
खुशी के साथ
बोलता है
यही ज़िन्दगी है
हम भी उसकी खुशी में साथ देते
हां सही जिंदगी है और
प्रसन्न होने का सांग करते
मुस्करा देते हैं

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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