
“सुखकर संसार का हो सृजन “
अप्रतिम हो जीवन का अर्जन
मनोविकारों का हो विसर्जन
सुखकर संसार का हो सृजन
सबका सदा सब सम्मान करें
पावन प्रतिती का भी मान करें
मनो मालिन्य का हो मर्दन
सुखकर संसार का हो सृजन!
चित्त की चितवन में चिंतनकरे अपनीवृत्तियोंकाअवलोकनकरे
सहज भावों का हो आगमन
सुखकर संसार का हो सृजन!
भ्रम के मुकड़जाल से रहे परे
माया के मायाजाल से दूर रहे
दिखावटो से दूर हो मन
सुखकर संसार का हो सृजन!
कटीलें ककंटो के पंथ पड़े है
सुप्त भाव से मन भी भरे है
सारे दूर हो उत्पीड़न
सुखकर संसार का हो सृजन!
अनभिज्ञ नहीअपने करम से
सवाल करें वो अपने मन से
इस बात पर हो मंथन
सुखकर संसार का हो सृजन!!
यशवंत भंडारी यश