पांच चैत्यवंदन –
जय तलहटी पर करने का प्रथम चैत्यवंदन —
श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे;
भाव धरीने जे चढे, तेने भव पार उतारे.
अनंत सिद्धनो ऐह ठाम, सकल तीर्थनो राय;
पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय
सूरजकुंड सोहामणो कवडजक्ष अभिराम;
नाभिराया कुलमंडणो, जिनवर करुं प्रणाम l
सिद्धगिरि का स्तवन –
सिद्धाचलगिरि भेट्या रे, धन्य भाग्य हमारा;
ओ गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न आवे पारा; रायणरुख समोसर्या स्वामी, पूरव नवाणुं वारा रे,धन्य.१ मूलनायक श्री आदिजिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा; अष्टद्रव्यशुं पूजो भावे, समकित मूल आधारा रे, धन्य.२
भाव भक्ति सुं प्रभु गुण गातां, अपना जन्म सुधारा;
यात्रा करी भविजन शुभ भावे, नरक तिर्यंच गति वारा रे,धन्य. ३
दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तोरा;
पतित उद्धारण बिरुद तमासँ, तीरथ जग सारा रे, धन्य.४
संवत अढार त्यासी मास अषाढा, वदि आठम भोमवारा; प्रभुजी के चरण प्रताप के संघ में, खिमारतन प्रभु प्यारा रे.धन्य. ५
श्री शत्रुजय की स्तुति-
श्री सिद्धाचल मंडण, ऋषभ जिणंद दयाल,
मरुदेवानंदन, वंदन करुं त्रण काल;
ओ तीरथ जाणी, पूर्व नवाणुं वार,
आदीश्वर आव्या, जाणी लाभ अपार;
श्री शांतिनाथ भगवान का द्वितीय चैत्यवंदन–
शांति जिनेश्वर सोलमा, अचिरासुत वंदो,
विश्वसेन कुल नभोमणि, भविजन सुख कंदो
मृगलंछन जिन आउखुं, लाख वरस प्रमाण,
हत्थिणाउर नयरी घणी, प्रभुजी गुण मणि खाण
चालीश धनुषनी देहडीओ, समचउरस संठाण,
वदन पद्म ज्युं चंदलो, दीठे परम कल्याण l
श्री शांतिनाथ प्रभु का स्तवन —
शांति जिनेसर साचो साहिब,
शांतिकरण इण कलिमें हो जिनजी,
तुं मेरा मन में, तुं मेरा दिल में,
ध्यान धरूं पल पल में साहेबजी, तुं.१
भवमां भमतां में दरिशन पायो,
आशा पूरो ओक पल में हो जिनजी तु.२
निरमल ज्योत वदन पर सोहे,
निकस्यो ज्युं चंद बादल में हो जिनजी. तु.३
मेरो मन तुम साथे लीनो,
मीन वसे ज्युं जल में हो जिनजी. तु.४
जिनरंग कहे प्रभु शांति जिनेश्वर,
दीठोजी देव सकल में हो जिनजी. तुं.५
श्री शांतिनाथजी की स्तति –
शांति जिनेश्वर समरीओ, जेनी अचिरा माय,
विश्वसेन कुळ उपन्या, मृग लंछन पाय;
गजपुरी नयरीनो धणी, कंचन वरणी छे काय,
धनुष चालीसनो देहडी, लाख वरसनुं आय.
रायण पादुका का तीसरा चैत्यवंदन –
एह गिरि उपर आदिदेव, प्रभु प्रतिमा वंदो,
रायण हेठे पादुका, पूजीने आणंदोर १
एह गिरिनो महिमा अनंत, कुण करे वखाण,
चैत्री पूनमने दिने, तेह अधिको जाण २
एह तीरथ सेवो सदा, आणी भक्ति उदार
श्री शत्रुजय सुखदायको, दान विजय जयकार ll
रायण-पादुका स्तवन –
नीलुडी रायण तरु तले, सुणसुंदरी,
पीलुडा प्रभुना पायरे, गुणमंजरी
उज्जवल ध्याने ध्याईए, सुण.
अही ज मुक्ति उपाय रे. गुण. १
शीतल छायडे बेसीए, सुण. रातडो करी मन रंगे गुण. पूजीए सोवन फूलडे, सुण. जेम होय पावन अंग रे, गुण.२
खीर जरे जेह उपरे, सुण. नेह धरीने अह रे, गुण.
त्रीजे भवे ते शिवलहे, सूण. थाये निर्मल देह रे, गुण.३
प्रीतधरी प्रदक्षिणा, सुण. दीओ एहने जे सार रे गुण. अभंग प्रीति होय तेहने, सुण. भवोभव तुम आधार रे गुण.४
कुसुम पत्र फळ मंजरी, सुण. शाखा थड ने मूळ रे गुण. – देव तणा वासाय छे, सुण. तीरथ ने अनुकूल रे गुण. ५
तीरथध्यान धरो मुदा, सुण. सेवो अहनी छांय रे, गुण. । ज्ञान विमल गुण भाखीयो, सुण. शत्रुजय महात्म्य मांही रे, गुण. ६
रायण-पादुका स्तुति –
श्री शत्रुजय आदि जिन आव्या, पूर्व नवाणुं वारजी,
अनंत लाभ इहां जिनवर जाणी, समोसर्या निर्धारजी; विमलगिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल ईणे ठामजी, कांकरे कांकरे अनंता सिद्धा, अकसो ने आठ गिरि नामजी ll
श्री पुंडरिकस्वामी का चोथा चैत्यवंदन —
आदीश्वर जिनरायनो, गणधर गुणवंत,
प्रगट नाम पुंडरिक जास, महिमाले महंत पंच कोडी मुनिंद साथ, अणसण तिहां कीध,
शुकल ध्यान ध्याता अमूल, केवल वर लीध
चैत्री पूनमने दिने ओ, पाम्या पद महानंद,
ते दिन थी पुंडरिक गिरि, नाम दान सुखकंद
श्री पंडरीकस्वामी का स्तवन —
एक दिन पुंडरिक गणधरूं रे लाल,
पुछे श्री आदि जिणंद सुखकारी रे;
कहीजे ते भवजल उतरी रे लाल,
पामीश परमानंद भव वारी रे. एक ..१
कहे जिन इण गिरि पामशो रे लाल,
ज्ञान अने निरवाण जयकारी रे;
तीरथ महिमा वाधशे रे लाल,
अधिक-अधिक मंडाण निरधारी रे. एक ..२
इम निसुणीने ईहां आवीया रे लाल,
घाति करम कर्या दूर तम वारी रे;
पांच क्रोड मुनि परिवर्या रे लाल,
हुआ सिद्ध हजुर भव वारी रे. एक ..३
चैत्री पूनम दिन कीजिए रे लाल,
पूजा विविधप्रकार दिलधारी रे;
फल प्रदक्षिणा काउसग्गा रे लाल,
लोगस्स थुइ नमुक्कार नरनारी रे, एक ..४ ।
दश वीश त्रीश चाली भला रे लाल,
पचाश पुष्पनी माळ अतिसारी रे;
नरभव लाहो लीजिए रे लाल,
जेम होय ज्ञान विशाल मनोहारी रे, एक.. ५
श्री पुंडरीकस्वामी की स्तुति —
पुंडरीक मंडण पाय प्रणमीजे,
आदीश्वर जिनचंदाजी,
नेम विना त्रेवीस तीर्थंकर,
गिरि चढिया आणंदाजी;
आगम माहे पुंडरीक महिमा
भाख्यो ज्ञान दिणंदाजी,
चैत्री पूनम दिने देवी चक्केसरी,
सौभाग्य द्यो सुखकंदाजी l
दादा के दरबार में श्री आदिनाथ प्रभु का
पाँचवा चैत्यवंदन …
आदिदेव अलवसरू, विनीतानो राय,
नाभिराया कुल मंडणो, मरूदेवा माय. १
पांचशें धनुषनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल,
चोराशी लख पूर्व-, जस आयु विशाल. २
वृषभलंछन जिन वृषधरूअे ;
उत्तम गुणमणि खाण;
तस पदपद्म सेवन थकी, लही अविचल ठाण. ३
श्री आदिनाथ भगवान का स्तवन –
माता मरुदेवीना नन्द, देखी ताहरी मूरति मारूं मन लोभाणुजी के मारूं चित्त-चोराणुं जी ।
करूणानागर करूणा-सागर, काया-कंचन-वान । धोरी-लंछन पाउले कांई, धनूष पांचसे मान माता १ ..
त्रिगडे बेसी धर्म कहता, सूणे पर्षदा बार ।
योजनगामिनी वाणी मीठी, वरसन्ती जलधार माता २
उर्वशी रूडी अपछराने, रामा छे मनरंग । _
पाये नेउर रणझणे कांई, करती नाटारम्भ …माता ३
तुंही ब्रह्मा, तुंही विधाता, तुंही जगतारणहार ।
तुज सरीखो नहि देव जगतमां, अरवडिया आधार माता ४
तुंही भ्राता, तुंही त्राता, तुंही जगतनो देव । सुर-नर-किन्नर-वासुदेवा, करतां तुज पद सेव …माता ५
श्रीसिद्धाचल तीरथ केरो, राजा ऋषभ जिणंद ।
कीर्ति करे माणेकमुनि ताहरी, टालो भवभय फंद .माता ६
श्री आदिनाथ भगवान की स्तुति-
आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया,
मरूदेवी माया, धोरी लंछन पाया;
जगत स्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया,
केवल सिरिराया, मोक्ष नगरे सिधाया ।
