झाबुआ

मांगू जैसी लाखो, ठिठुरती
झोपड़ी

सांय सांय करती अंधेरी रात सदियों से, जी रही ये इस गाँव की ये रातें और इस गाँव जैसे लाखों गाँव की राते , आज तक अंधेरे से मुक्त नहीं हुए ये राते, इन रातों में ठण्ड से लड़ते देखा है मैने अपनी आँखों से सदा ही कितने ही मासूम चिड़ियों की तरह चहकते
बच्चों को,अबला माँ को, बृद्ध को, सालों तक देखा है जीते जिंदगी से लड़ते लड़ते जीते हर वर्ष पूरा जीवन
सदियों से छले जा रहे ये भोले भाले
पूरी रात सो नहीं पाता हूँ सोच कर है ईश्वर क्यों ऐसा क्यों है,
आज तो सचमुच कहर ढाती रात थी गाँव पूरा खामोश था, जो ठण्ड शहर के सम्पन्न को, सुख और सुकूंन दे मस्ती लिए थी, शबाब मे, राग रंग में,
जीवन के अद्भुत रंग लेरियो में, वही ठण्ड मेरे गाँव की दुश्मन बनी हुई थी
प्रभु क्यों हाँ क्यों ऐसा किया कि रात यह बरसती ठण्ड आज डकार गई, बेवजह उन मासूम चिड़ियों की तरह चहकते बच्चों को, सारा गाँव कुछ न कर सका, सभी तो ऐसे ही जी रहे थे
किसी के पास भी कुछ नहीं था टूटी फूटी झोपड़ी, कितने ही कवेलु नदारत
ऊपर से, ठण्ड को भी मिल गई जगह बहुत ही आराम से पसरी थी सभी की झोपड़ी में, होना ही था हुआ, जितना दम भर सकते थे सभी न रात गुजरी सदा की तरह आदत सी हो गई पर आज अभी अभी कुछ देर पहले हुए वो दो मासूम चिड़ियों के बच्चे से, नहीं सहन कर पाये और बेवजह, पैदा होते ही दम तोड़ दिया, जब उन्हें तुझे लेना ही था तो जन्म क्यों दिया ईश्वर, कैसा है तू, क्यों है तू ऐसा, कोई आज तक नहीं समझ पाया, कैसे भूल सकता हूँ बो रात में भी जब उसी गाँव में था, चुनाव आयोग के आदेश का पालन करते हुए अपने घर को चलाने के लिए बच्चों को पालने के लिए, बहुत कुछ सहन करते हुए, सारी सरकारी नौकरी सदा ही गुलामी करते हुए, अफसरों की हाँ मिलते हुए, दिन को रात कहे तो हाँ, रात को दिन कहे तो हाँ वरना तो हम सब जानते है कितने भयावह होते है ये अहम् पाले अफसर की बू लिए अफसर, भगवान् रक्षा करे इन लोग से,

खैर, आज वो ठण्ड खा गई उन मासूम को, पहले भी ऐसा हुआ होता रहा है अक्सर लोग भोले भाले ये आदिवासी इसी तरह जी रहे है सदियो से, पता नही कब तक ऐसा ही जीना है हर कोई केवल सदा ही आश्वासन देता हुआ चला जाता हैं सब कुछ देख कर
जब ईश्वर ही ध्यान नहीं दे रहा है तो, नीचे वाला कहाँ लगता हैं, यदि ईश्वर है तो ऐसा क्यो है, सोचना होगा, विचार करना होगा, लेकिन नहीं कोई नहीं सोचता, सुख और सुकूंन मै जीता आदमी क्यों व्यर्थ प्रलाप मै, समय खराब कर, अपना जीना सुख और आनन्द को नष्ट करे, किसी को किसी से कोई लेना देना नहीं, सब को केवल अपनी खुद की पड़ी है यह सत्य है सालों का सदियों का, हम क्यों नहीं समझते ये सत्य, खैर, प्रभु सभी को सब कुछ दे, सुख और सुकूंन दे, कभी तो सोच सभी के लिए की सदा ही उनके लिए सोचेगा जो वैसे ही सदा ही अथाह सुख और सुकूंन समेट है

डॉ रामशंकर चन्चल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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