
लो शहर का रावण
मर गया
जिस चौराहे पर
सड़क पर, रोज़ सालों
से धुमता हूँ, आज अथाह भीड़, साथ साथ चल रही हैं
सभी लोग, रावण मारने जा
रहे है, अजीब जोश है
तनाव है, मस्ती की खुमारी
रावण मारना है, मजाक नहीं, कागज का बना
वैसे तो, उसे, उसके भीतर डाले गए पटाको में से
एक बाहर से, जला, सब कोसों दूर, भाग जाते है
वह रावण मारता है
सभी लोग, जश्न मनाने लग जाते है, हमने रावण को
मार दिया
फिर भीड़ उसी जश्न लिए
लौटती है, अपने घर
अथाह खुशी लिए
रावण मारा है, मजाक नहीं
खैर साहब, सत्य यह की
रावण को सदियों हो गए
प्रभु श्रीराम के हाथों
मुक्ति पा, जिसे वह
शिव भक्त, धन्य समझता
काश ये दुनिया,
कब अपने भीतर पल रहे
रावण को मार सकेगी
उस दिन हाँ, उस दिन
सचमुच, रावण मरेगा
बस प्रभु इतना कर दे
ताकि देश, सुख चैन और
आनन्द के साथ, बिना राग
द्वेष, छल, कपट के
प्रेम और प्यार से जीये
और जीने दे, सभी को
यह तो तुम भी, जानते हो
प्रभु, सत्य है
यह सत्य, साकार कर दे
प्रणाम, प्रभु राम
तूने आज, मेरे शहर के
रावण को, मार दिया
सत् सत् प्रणाम
डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश
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