झाबुआ

तुझ बिन जीवन कोरा कागज

जीवन की आधार शिला में,
एक लघु जीवन मेरा,
मृत्यु तू तो अटल सत्य है,
तुझसे मिलना, तय मेरा!

कोरा कागज  सा ये जीवन”
कितने रूप बदलता है “
हर रिश्ते मे दांव पेच है”
अक्सर नही समझता  है!!

प्रेम बिना सारा जग सूना “
खाली पन्ना कागज का”
जटिल प्रश्न के साथ कलम है”
शब्द निरूत्तर सा होना!

कितने पल छीन गुजर गये है,
तन पर मटमैली साडी”
एक पुरूष के बिन नारी का”
कितना कुछ दोहन होना”

सभ्य समाज पर चढा मुखौट “
तन डसती,है,हर आंखे”
मृत्यु  चुनना तय कर डाला”
सूखी बरगद की सांखे!

सुदंर समय स्वप्न बने कब”
समझी न कल की ब्याहता “
पाव महावर ,रूनझुन पायल “
धूल हुऐ सारे अरमां!

कोरा कागज ये जीवन का”
बीती चिट्ठीया पढता है”
हे मृत्यु  अब तो चुन मुझको “
मन पिजंर तरसता है!!

श्रीमती रीमा महेंद्र ठाकुर “
वरिष्ठ लेखक, साहित्य संपादक “
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत

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