प्रभु आज्ञा पालन ही सच्ची आराधना

स्थानीय श्री ऋषभदेव बावन जिनालय स्थित श्री राजेंद्रसूरी पोषदशाला में गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय जयानंद सूरिश्वरजी मसा के शिष्य पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय दिव्यानंदसूरिश्वरजी एव मुनि मण्डल -७ तथा साध्वीमण्डल -१२ चातुर्मास हेतु विराजित हे । चातुर्मास के दोरान पूज्य आचार्यश्री दिव्यानंद सूरिश्वरजी “ उपदेश माला “ ग्रंथ की गाथाओ का प्रतिदिन विश्लेषण कर रहे हे । आज पूज्य आचार्यश्री ने प्रथम गाथा का विश्लेषण करते हुए कहाँ की प्रभु आज्ञा का पालन ही सच्ची आराधना हे ।यह आराधना ज्ञान सहित होना आवश्यक हे अन्यथा आराधना सफल नहीं हो सकती है । आचार्यश्री ने कहाँ कि प्रभु महावीर ने यदि शासन स्थापना नहीं कि होती तो संसार जगत में जीवों की विचित्र स्थिति हो जाती । उन्होंने बताया कि प्रभु महावीर ने उपदेश देने के पहले ख़ुद ने सहन किया हे अतः मानव को भी सहनशील बनना होगा ।सहन करेंगे तो ही कर्म की निर्जरा आसानी से हो सकती हे । सहन करने से दया के भाव प्रकट हो सकते हे ।आचार्यश्री ने कहाँ कि आज हर मानव मोक्ष रूपी सुख चाहता है लेकिन मोक्ष प्राप्त करने के लिए मोक्ष मार्ग को पहले अपनाना होगा जो की ज्ञान सहित प्रभु वचनो में श्रद्धा लाना होगी । श्रद्धा होगी तो जीवों के प्रति दया भाव आएगे जिससे जीवों की हिंसा कम होगी और आपकी आराधना सफल होगी ।मुनि रामविजय जी ने “श्राद्ध प्रतिक्रमण “ सूत्र का वाचन प्रारंभ किया । उन्होंने वाचन करते हुए कहाँ की “प्रतिक्रमण “की क्रिया को जैन दर्शन में आवश्यक क्रिया कहाँ गया है ।प्रतिक्रमण क्रिया प्रतिदिन करने से पापों से मुक्ति मिलती हे और आत्मा स्वभाव में आती हे किंतु यह संभव होगा यदि हम यह क्रिया भाव पूर्वक करे ।चातुर्मास समिति अध्यक्ष संजय मेहता ने बताया , पूज्य आचार्यश्री की निश्रा में “दसविध यति धर्म “ की २०,दिवसीय तपस्या ९० श्रावक श्राविकाए कर रहे हे ।इस तप में श्रावक श्रावकाए क्रिया के साथ केवल गर्म जल ग्रहण कर एक दिन उपवास व्रत और एकाशन व्रत कर रहे हे ।