शिक्षक दिवस पर विशेष शिक्षक, डॉ रामशंकर चंचल की अद्भुत साहित्य साधना और जीवन दर्शन*
एक पिता की पूरी जवाबदारी, एक दादा की, नाना की, फिर प्रतिदिन अपने पूरे घर की सफाई कर्मचारियों की तरह पूरी निष्ठा से फिर अपने स्वस्थ जीवन के लिए प्रतिदिन सात , आठ किलोमीटर धुमना और बहुत ही सदा खाना लेना और फिर समय मिलने पर रात दस से सुबह तक लेखन करना इसी में समय निकाल कुछ मित्रों से वासब् पर कभी कभी बात फोन किये और उठाये सालों हो गये उसके लिए उन्हें समय ही नहीं मिल पता है और नींद पूरे दिन रात में जब वो आये तब उसका आदर करते हुए तीन घण्टे अधिक से अधिक सोना
फिर वही दिनचर्या इसी बिच कोई भी
मिलने आये उसे पुरा समय देते है जब तक वो चाहें घर आया उनके लिए सदा ही ईश्वर तुल्य होता है
एकदम सहज सरल और सादगी लिए
पुरा जीवन अभी तक बहुत कुछ पीड़ा के बावजूद साहित्य की रोज़ चालीस सालों सेवा करते हुए बीत रहे है आज भी पूरी निष्ठा से लगन से, खाना कभी
एक समय खाया होगा पर लेखन ऐसा नहीं हुआ कभी की कुछ लिखा पड़ा और सोचा न हो, सचमुच देश में इस तरह के अद्भुत साहित्य साधक आज बहुत ही दुलर्भ है
किसी धर्म , किसी भी जाति और किसी भी मानव से कोई बैर नहीं सभी का आदर करते हुए सभी को सदा ही सम्मान देना कोई उनसे सीखे कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं सभी ईश्वर की संतान है सभी को सदा ही प्रणाम करते हुए जीवन जीना ही जीवन की
सार्थकता है कमाल की सोच और दर्शन लिए डॉ रामशंकर चंचल सदा ही
सालों से सक्रिय हैं साहित्य सेवा में प्रणाम करता हूँ पिछड़े आदिवासी इलाके के महान सहज साहित्य साधक को जो आज सचमुच सेकड़ों के दिलों में बेहद आदर से विराजमान हैं और सम्मानित है
झाबुआ मध्य प्रदेश