झाबुआ

इनसाँ की बेवसी पर कुछ लिख रहा हूँ में

हालाते ज़िन्दगी पर कुछ लिख रहा हूँ मैं

महलों की ज़िन्दगी से
मुझको गरज नही

एक मकाँ की ख़ुशनसीबी
पर कुछ लिख रहा हूँ मैं

पढ़ कर के गीता, कुरआं
अंधियारा छट् गया है

अब दिल की रोशनी
पर कुछ लिख रहा हूँ मैं

मेहनत के बाद भी पेट भर
मिलती नहीं है रोटी

इनसाँ की भुखमरी
पर कुछ लिख रहा हूँ मैं

हर किसी की जुबां पर
बात इतनी हो “यश “

हर वक्त तेरी बन्दगी
पर लिख रहा हूँ में

हालते जिंदगी पर
कुछ लिख रहा हूँ में
यशवंत भंडारी यश

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button