
चलों आज रावण मारते है
चलों हम सब मिल
आज
रावण मारते है
उस रावण की बात नहीं
रहा हूँ
जो कागजों से बना
फटकों से सजा है
मै तो हम सब के
भीतर पनप रहे
रावण की बात कर रहा है
सदियों से जिन्दा हैं
हम उसे आज तक नहीं
मार सके
कितने कमजोर और
असहाय है हम
की हमारे भीतर सदियों से
राज कर रहा
कितनों को ही
कितनी तरह की
पीड़ा, यातना दे रहा
उस रावण को नहीं
मार पाये
चलों आज कुछ तो
प्रयास करों
कुछ तो संकल्प लो
और मारे हमारे ही
भीतर तूफान मचाते उस
रावण को
जिसने कितनों का
जीना हराम कर रखा है
तभी सार्थक होगा
यह पर्व व्यर्थ
कागज के रावण बना
फटाके डाल
अपने अहम् की
डुगडुगी बजाने से
क्या होगा
समय रहते हुए
अब भी सम्भल जाओ
और सदियों से
दिल और दिमाग में
बैठा रावण को
मारे, पतन करे
खत्म करे और
सार्थक करे इस
ताकि जी सके
सभी सुखी और सुखद
जीवन
डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश