झाबुआ

पचास सालों की साहित्य साधना पूरी रात जाग की अब मुझे लगा है में कवि हूं

कविता लिखना इतना आसान नहीं है जो कुछ लिखा जा रहा है अक्सर सच तो यह है कि केवल मन समझने वाली बात है थोड़ा बहुत कूच लिख छुप जाने से या एक कृति निकाल लेने पर खुद को महान कवि समझना सचमुच नादानी है सच तो यह है कि आज पचास सालों से पूरी रात जाग कर साहित्य साधना कर रहा हूं लेकिन आज जब मुझे किसी भी विषय पर कभी भी कविता लिखने को कहां जाय एक मिनिट या दो मिनिट में कविता दौड़ती हुई कागज पर या मोबाइल पर आ जाती है अपनी पूर्णता के साथ फिर कभी भी कविता लिखने के बाद दुबारा नहीं देखना चाहते है आज अब जा कर यह अद्भुत रूप किसी कवि का समझा हूं सचमुच या कहे परम् सत्य है कि आज मैं खुद को कवि समझना सार्थक समझता हूं
सच तो यह है कि जीवन में कोई भी कला हो इतनी जल्दी कभी कुछ नहीं होता है पूर्ण होने में उस कला के महारथी होने में बहुत बहुत ही तपना होता है श्रम और निष्ठा से समर्पित होना होता हैं कला कोई भी हो ईश्वर का अद्भुत शंखनाद आशीर्वाद है जो आप कर रहे है उसके लिए निष्ठा और चरित्र लिए होना स्वाभाविक है और सहजता सरलता वंदनीय हैं तभी हां तभी कुछ हासिल कर सकते हैं जब तक मानवीयता , निष्ठा और समर्पित नहीं है आप कुछ भी संभव नहीं है ये बात और है कि थोड़ा बहुत कर हम खुद को महान साधक समझ बैठे यह आपका विषय है समझे कोई रोकता है सच तो यह है कि आप नहीं समझे और दूसरे आपको समझे तब उस ईश्वर रूप की कला साधक की सार्थकता है

बेहतर यह है कि लगे रहे बिना किसी चाह के समझने वाली व्यर्थ बातों के जितना भी करेंगे उतना कम होगा सत्य है यह तभी हां तभी आप कुछ सार्थक उपलब्धि हासिल कर देश को विश्व को समाज को दे सकते है जो आनेवाले कल के लिए सचमुच सार्थक प्रेरणा स्त्रोत होगा

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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