झाबुआ

💐💐मिले शहर की शाम, रात से💐💐

चलों आज हम आपको
मेरे शहर की शाम रात से
मुलाकात कराते हैं
वैसे लगभग सभी शहर ऐसे ही हैं
जिस चौराहे पर, धूमने के बाद
कुछ देर खड़ा हो जाता हूं
अथाह भीड़ लकड़ियों की
गुजरती हैं स्कूटी से, कुछ कार
कुछ पैदल, सभी सजे धजे
बेमतब मस्त है
मस्ती की कोई वजह नहीं है
बस उन्हें यही ज़िन्दगी लगती हैं
इसी तरह धूमते है
शाम कुछ कपल
ज्यादा तरह वो जिन ने
अभी अभी ब्याह रचाया
कुछ तो भी खरीद लेंगे या
किसी चौपाटी पर
दूध और जलेबी या पानी पताशे
खाते दिखाई देगे अथाह भीड़ यहां भी, इन सभी को लगता है
आज जी लिए
फिर रात को गुजारते है
नो या दस भजे बाद
कुछ युवा पीढ़ी के छात्र तो
कुछ अमीर लोगों के शौक
पता नहीं कौन किस नशे में हैं
बस खुराटी मरते हुए
कोई गीत गुनगुनाते हुए
या कार, स्कूटी दौड़ाते
इन्हें लगता है यही ज़िन्दगी है
ये सब रोज रोज़ दिखते हैं
वैसे रात को दिखाई देते युवा पीढ़ी के लोग या अन्य लगते गलत हैं
पर होते है ये शाम की अथाह भीड़ से
अच्छे इंसान दिल के
यह मैने सदा ही अनुभव किया
खैर साहब देर रात लौटते घर ये लोग
फिर जब सारा शहर सो जाता है
में और मेरे जैसे शायद दो चार
जीते हैं, कोई कलम थामे मेरी तरह
कोई किसी स्वर में गीत गुनगुनाते
कोई चित्र बनाते हुए
कुछ मात्र कुछ पागल होते है
जिन्हें लगता है हम जी रहे है
खैर राम जाने उसकी दुनिया
अच्छा यह है कि
सभी को लगता है हम जी रहे
बस यही तो हम भी चाहते है
जीयों , मस्त रहो सदा ही
आज मिला जी डालो
कल कभी नहीं होता है
जिसे सब कल कहते है
वह आज ही होगा
जीयों और जीने दो
एक सूत्र हो
सब कुछ भूलों
राग द्वेष, जलन ईर्ष्या और
ऊंच नीच, जाति धर्म
सब कुछ व्यर्थ बात है
चलों हम भी जी लिय आज
बंद करते हैं कमल
सो जाते हैं
पता नहीं नींद कब आयेगी भी
या सुबह हो जाएगी

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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